Book Title: Pat Darshan Author(s): Kalpana K Sheth, Nalini Balbir Publisher: Jain Vishva BharatiPage 41
________________ वेबछायापकमिनेनमस्कारहाणा श्रीमिबलमीईपक्षा स्वा श्रीसिहावलजीनामतिमाविसावरण्या सामलिमीचा घणश्रीविनलावल नेसवताथया सानिवसिधपद वस्या श्रीयापकानां सहस्रपुरषसंबनलीकाश्रीजसापामारक सो सातगाधरात्रिणलापत्रिससारसाधारतियापधार घाविमझारसाची बेलाषयावरहजार श्रावक पांचलाषयान हजारश्नामिका अधिनुषहमाविसलाबपुखमा रक्तपियलमायअनचायासाकसहिमा श्रीसमेत सिषरेसिधपदवस्यानमारकः श्रीनिमलजिवलजीतमनस्का करूाधा मूल पाठ हवे छट्ठा पद्मप्रभुजिने नमस्कार होः। 6 श्री सिधाचलजीइं पधारया। श्री सिधाचलजीनो महिमा विसेष वरणव्यो। ते सांभलि जीवः घणा श्री विमलाचलने सेवतां थया। घणां जिव सिधपदनें वरयां। श्री पद्मप्रभुजिइं सहस्र पुरुष सुं व्रत ली / श्री जसः प्रमुख एकसो सात गणधर, त्रिण लाख छत्रिस हजार साधु, रति प्रमुख चार लाख विस हजार साधवी, बे लाख छेयातेर हजार श्रावक, पांच लाख पांच हजार श्राविका। अढिसें धनूष देहमा(न), त्रिस लाख पूरवनूं आउं, रक्त वर्ण, पद्म लंछनः। आठसें अने त्रीण साधु सहित श्री समेतसिखरे सिद्धपद वरया। नमोस्तुः श्री विमलजिचलजीनें नमस्कार करूं छुः।6। हिन्दी अनुवाद 6. पद्मप्रभुजी आपने 1,000 पुरुषों के साथ प्रव्रज्या अंगीकार की थी। विचरण करते हुए आप सिद्धाचलजी पधारें। अपनी देशना में सिद्धाचलजी की महिमा बताई। उससे प्रतिबोधित होकर भव्य-प्राणियों ने प्रव्रज्या ग्रहण की और सिद्धपद-मोक्षपद प्राप्त किया। पटदर्शनPage Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154