Book Title: Parichay Patra
Author(s): Rupchand Jain
Publisher: Antarrashtriya Jain Sammelan

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Page 3
________________ * सम्मेलन का परिचय * __ स्थापना तथा उद्देश्य जैन धर्म एक प्राचीन तथा स्वतन्त्र धर्म है । “अहिंसा परमो धर्मः” उसका मूल मन्त्र है । जैन आचार्यों ने समय-समय पर द्रव्य क्षेत्र काल तथा भाव के अनुसार आचरण करने का सदुपदेश दिया है। विश्व में तेजी से होने वाले परिवर्तनों को लक्ष्य करके तथा भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित 'धार्मिक न्यास विधेयक' को ध्यान में रखते हुये समयानुसार सामाजिक व्यवस्था, सांस्कृतिक व्यवस्था, राजनैतिक व्यवस्था, आर्थिक व्यवस्था धार्मिक व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था, तथा समग्र विश्व में जैन धर्म के प्रचार हेतु कार्तिक कृष्णा १५ वीर निर्माण सम्वत् २४८७ में अन्तर्राष्ट्रीय जैन सम्मेलन नामक संस्था की स्थापना की गयी। सम्मेलन एक क्रान्तिकारी संगठन होगा; जो जैन धर्म समाज एवं देश को अन्य देशों की तरह हमेशा उन्नति के पथ पर अग्रसर होते हुये देखना चाहेगा । इसलिये इस सम्मेलन को समाज में प्रचलित कुरीतियों, त्रुटियों, बुराइयों एवं बढ़ी हुई फिजुल खर्चियों के विरुद्ध आवाज उठानी पड़ेगी तथा उसके लिए सम्मेलन के पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं को समाज का कड़ा प्रतिवाद भी सहन करना पड़ेगा, परन्तु प्रत्येक विरोध के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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