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परम्परागत प्राकृत व्याकरण की समीक्षा और मधमागधी
में मिलता है । विद्वानों के अनुसार यह पाठ भी शंका से मुक्त नहीं है । इसी शब्द के अन्य प्रयोग अशोक के अन्य शिलालेखों में ग्यारह बार और मिलते हैं, जिनमें शब्द के प्रारम्भ में 'नि' का प्रयोग ही हुआ है ।
पूर्वी भारत के खारवेल के शिलालेख में भी एक बार भी प्रारम्भिक . 'न' का 'ण' नही मिलता है । शब्दों में प्रयुक्त प्रारम्भिक 'न' के , कुछ शिलालेखीय और भी उदाहरण चतुर्थ शताब्दी तक के दिये जा सकते हैं, यथा
निसिलं (बी, बड़ली) अजमेर, ई. स. पू. द्वितीय शताब्दी । नमो (विजय सातकर्णी, नागार्जुनीकोण्ड) ई. स. तृतीय शती ।।
'न' कार को 'ण' में बदलने की प्रवृत्ति दक्षिण भारत से प्रारम्भ हुई हो ऐसा माना जाता है । फिर भी दक्षिण में भी चतुर्थ शताब्दी के कितने ही प्रयोग ऐसे मिलते हैं जिनमें 'न' कार भी मिलता है।
शिलालेखों में जो प्रवृत्ति मिलती है उसका सार प्रो० मेहेंडले (पृ. 256) के अनुसार इस प्रकार है
__ प्रारम्भिक 'न' का 'ण' अशोक के समय में सिर्फ दक्षिण में कोपबाल के लेख में कभी कभी मिलता है । तत्पश्चात् मध्य भारत में दूसरी शताब्दी ईस्वी सन् पूर्व से और (दक्षिण भारत के) पश्चिमी क्षेत्र में (पूना इत्यादि) प्रथम शताब्दी में पाया जाता है। निश्चयात्मक उदाहरण प्रथम शताब्दी. से. उत्तर-पश्चिम में पाये जाते हैं। पुनः मध्य भारत में चतुर्थ शताब्दी से पाये जाते हैं ।
शिलालेखों में शब्द के प्रारम्भ में नकार के स्थान पर णकार के . प्रयोग प्रारंभ हो जाने पर भी कुछ प्रयोग प्रारंभिक नकारवाले भी मिलते हैं।
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