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१२ कुछ अन्य विभक्ति प्रत्यय __ प्राकृत भाषा के कतिपय विभक्ति-प्रत्यय जो प्रारंभ में अनुस्वार-रहित थे उनमें उत्तरवर्ती काल में अनुस्वार का आगम हुआ और जो अनुस्वार-युक्त था उसमे से अनुस्वार का लोप हुआ । कालक्रम से दोनों प्रकार के प्रत्यय भाषा के अभिन्न अंग बन गये ऐसा स्पष्ट प्रतीत होता है । उनके इस प्रकार के विकास के बारे में निम्न विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया जा रहा है । १. नपुं. प्रथमा-द्वितीया बहुवचन
नपुसकलिंग प्रथमा और द्वितीया ब. व. के लिए वररुचि के प्राकृत-प्रकाश के द्वारा -इ प्रत्यय दिया गया है ।
इज्जश्शसोदीर्घश्च -5.26 उदाहरण - वणाइ, दहीइ, महइ ।
सूत्र नं. 6.23 की वृत्ति मे दिये गये 'अमूई, वणाई' के अनुसार और कॉवेल द्वारा दिये गये 'वणाई' उदाहरण के अनुसार (पृ 51, पा. टि. 11 ) -ई प्रत्यय भी बनता है ।
शौरसेनी के लिए दिये गये सूत्र मे -णि प्रत्यय भी मिलता है ।
मिर्जश्श्सोर्वा क्लीवे स्वरदीर्घश्च 12.11 उदाहरण - वणाणि
अर्थात् शौरसेनी में –णि और महाराष्ट्री प्राकृत में -इ और -इं । इसका अर्थ यह हुआ कि महाराष्ट्री से शौरसेनी पुरानी भाषा
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