Book Title: Paramparagat Prakrit Vyakarana ki Samiksha
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad

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Page 126
________________ परम्परागत प्राकृत व्याकरण की समीक्षा और अर्धमागधी डकार ) होने लगा । लिपि की दृष्टि से ळकार और लकार के लेखन में बहुत कम अन्तर है, इस कारण से भी ळकार का लकार में परिवर्तन हो गया हो ऐसा कहना भी अनुपयुक्त नहीं होगा । नीचे अर्धमागधी और अन्य प्राकृत रचनाओं में प्रयुक्त ळकार वाले प्रयोग दिये जा रहे हैं जो पिशल महोदय ने अपने प्राकृत - व्याकरण में उद्धृत किये हैं । (i) अर्धमागधी आगम ग्रंथ [पिशल के प्राकृत [म. जै. वि. के संस्करणों [ सूत्र नं.] व्याकरण के अनुसार ] के अनुसार ] (अ) अर्धमागधी भाषा के चार प्राचीन ग्रन्थ : १. आचारांग आवीळए आविळियाण उपळवेज्ज किळ्ळा खेळ्ळावण गरुळ गुळ तळाग दाळिम निप्पीळए पवीकर लेकुणा लेळु सि Jain Education International आवीलए आवीलियाण उप्पीला वेज्जा किड्डा खेल्लावण गरुल गुल तलाग दाडिम णिप्पीलए पवीलए लेलुणा लेउ सि For Private & Personal Use Only 143 373 474 64 741 ११७ 757,758 350 505 373,379 143 143 302,342 577 www.jainelibrary.org

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