Book Title: Paramparagat Prakrit Vyakarana ki Samiksha
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad

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Page 134
________________ परम्परागत प्राकृत व्याकरण की समीक्षा और अर्धमागधी १२५ एक ही अध्ययन में अलग अलग पाठ (प्राचीन और उत्तरवर्ती) आचारांग भगिणी ति वा 2.5.1.561 भइणी ति वा 2 5.1.559 परितावेतव्वा उद्दवेतवा 1.4.2.136 ण परितावेयवा ण उद्दवेयव्वा 1.4.1 132 अहापरिणातं वसामो 2.7.1.621 अहापरिण्णायं वसामो 2.7.1.608 इदाणिमेव दलयाहि 2.5.1.561 इयाणिमेव दलयाहि 2.5.1.562 चम्मछेदणए 2.7.2.622 चम्मछेयणगं 2.7 1 607 मेधावी 1.1.54 मेहावी 1.1.17,30,33,47 तिविधेण 1.2.79 तिविहेण 12.82 कम्पति आधाकम्मिए 2.1.9.590 कप्पति आहाकम्मियं 2.1.9 392 जे तत्थ समाधिठाए 2.7.2.62! जे तत्थ समाहिठाए 2.7.1.608 निग्घोस 2.5.1.563-565 णिग्घोसं 25.1.5-6 णो तं नियमे 2.13,697,699, णो तं णियमे 2.13.690-96, 703, 706-710, 713-723, 698.70.705,711,712, 728 724,726 तिन्नि नामधेज्जा 2 15.713 तिणि णामधेज्जा 2.15.744 सूत्रकृतांग अहावकासेणं 2.3.732 तिउति 1.1.1.5 आहिता 1.1.1.15 णिस्सिता 1.1.2.57 अहावगासेणं 2.3 723 तिउद्दई 1.1.1.1 आहिया 1.1.1.7 निस्सिया !.1.1.14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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