Book Title: Paramparagat Prakrit Vyakarana ki Samiksha
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad

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Page 138
________________ के वा इओ चुते पेच्चा भविस्सामि-आचा. 1.1.1.1 व सयं पाणातिवात करेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं आचा. 2.15.777 सवे सत्ता ण हंतव्वा ण सवे सत्ता ण हंतव्वा ण अज्जावेतव्वा - आचा. 1.4.1.132 | अज्जावेयव्वा - सूत्रकृ. 2.1.679 परम्परागत प्राकृत व्याकरण की समीक्षा और अर्धमागधी १२९ घम्मेणं इतो चुते पेटचा देवे सिया - सूत्रकृ. 2.1.682 पाणातिपातं तिविहं तिविहेणं नेत्र कुज्जा - इसिभा 1. पं, 4 (ii) मूल ग्रन्थ के पाठों और उसकी चूर्णि के पाठों में अन्तर मूल ग्रन्थ में उत्तरवर्ती और उसकी चूर्णि में प्राचीन पाठ विदेहदिण्णा, आचा. 2.15.744 | विदेहदिन्ना - आचा. पृ. 264 पर चूर्णिपाठ समाहीय, सूत्रकृ. Jain Education International 1.10.478 2.694-696 सूत्रक्र. - हेउ (अनेक बार) आत हेउ जहानामए अण्ण समाधीय, सूत्रकृ. पृ. 85 पर चूर्णिपाठ सूत्रकृ, पृ. - हेतुं आयहेतुं जघानामए अन्नं 152 For Private & Personal Use Only पर चूर्णिपाठ www.jainelibrary.org

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