Book Title: Paramparagat Prakrit Vyakarana ki Samiksha
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
View full book text
________________
१२४
के. आर. चन्द्र
धम्मा वि पुरिसादीया धम्मा वि पुरिसाईया 2.1.660, मुसं वदावेति, सयमेव मुसं वयति 2 2.700, मदेण, मएण, जातिमदेण, रूवमएण 2.2 703, केणइ आदाणेणं, केणइ आयाणेणं 2.2.710, निगथे, णिग्गंथे 1.16.637 नवनीतं, णवणीयं 2 1.650, जहानामए, जहाणामए 2.1.050 ऋषिभाषितानि
जं सुखेण दुहं, जं सुहेण सुह' 38.1, चयति संतति, भवसंतई 9.19, पावघाते हतं दुक्ख, पुप्फघाए जहाफलं 15.6, जीविताओ ववरोवेति, जीवियाओ ववरोवेज्जा, 34 पं. 26,29,30 जधा विरियं, जहा थाम, जहा बल 40 प. 10, तेतलिपुत्तेण अमच्चेणं 10 पं. 12
उत्तराध्ययन
खेत्ताणि, खेत्ताई 12.13, निच्च भीएण तत्थेणं दुहिएणं वहिएण य 19.72, पासेण य महामुणी, देसिओ वद्धमाणेणं 23.12, आलंबणेण, कालेणं 24.4, नाणेण य मुणी होइ, तवेग होइ तावसो 25.30, कालेणं, मग्गेण 24.4, कुसचीरेण, रणवासेणं 25.29, उभओ सीससंघाणं संजयाण तवस्सिण 23.10, अन्नमन्न, अण्णमण्ण 13.5, सामन्नं, सामण्णं 19.35 दशवकालिकसूत्र
विमणेण अकामेणं 51 111, उत्तरेण इमेणं 5.2.3, तेण उवाएणं 9.2.20, कारण, माणसे 11.18, आहारमाइणि, अभोज्जाई, 646, पउमगाणि 663, ठाणाई 6.7, पुरेकडाइं नवाई पावाई 6 67, विमाणाई 6 68, न 7.11.14, ण 7.13, नत्तुणिए 7.15, णत्तुणिय 7.18, पाणाणं पंचिदियाण. 7.21, खंभाणं तोरणाण 7.27
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162