Book Title: Paramparagat Prakrit Vyakarana ki Samiksha
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad

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Page 124
________________ १३ प्राकृत भाषाओं में मध्यवर्ती व्यंजन 'ळ' वेदों की भाषा में मध्यवर्ती ळकार के प्रयोग मिलते हैं । पालि भाषा में भी यह परम्परा चालू रही । अशोक के पूर्वी भारत (और उत्तर) के शिलालेखों में ळकार का प्रयोग मिलता है' (एळक, दुवाळस और पंनळस = एडक, द्वादश, पञ्चदश) । डॉ. मेहेण्डले (पृ० 272,460 ) के अनुसार ळकार का प्रयोग अशोक के काल में पूर्वी भारत (और उत्तर भारत) में, ई० स० प्रथम शताब्दी में पश्चिम में और ई० स० दूसरी शताब्दी में दक्षिण में मिलता है। उनके अनुसार ळकार का प्रयोग पूर्व से (और उत्तर से) अन्य प्रदेशों में फैला है । हेमचन्द्राचार्य ने (8.4.308) पैशाची भाषा के लिए लकार के बदले में ळकार का नियम दिया है। परन्तु अन्य प्राकृत भाषाओं के लिए (चूलिका पैशाची के सिवाय) ळकार के प्रयोग का उल्लेख नहीं किया है। पालि भाषा और अशोक के पूर्वी भारत के शिलालेखों में ळकार का प्रयोग मिलते हुए भी अर्धमागधी आगमों के आधुनिक संस्करणों में ळकार का अभाव है । हेमचन्द्राचार्य के प्राकृत व्याकरण में उद्धत (8.1.7.) एक प्राकृत पद्य में 'कळम' कलभ शब्द में 'ळ' मिलता है, इससे अनुमान 1. देखो : Asoka text & Glossary, Part II, Glossary, A.C. Woolner, Oxford University, Calcutta, 1924 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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