Book Title: Paramparagat Prakrit Vyakarana ki Samiksha
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
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परम्परागत प्राकृत व्याकरण की समीक्षा और अधमागधी
१११
धूणाऽऽदाणाई लोगंसि 1.9.11 (पाठा. धुत्तादाणाणि सूत्रकृ. चू.)
उत्तराध्ययन
संजयाण तवस्सिणं 23.10 (पाठा. संजयाण, ला १, २, ह, शा, पा, ने.)
इंदियाण य झुंजणे 24.24 (पाठा. इंदियाण, सं १) देसिओ बद्रमाणेण 23.12,23 (पाठा. बद्धमाणेण--सं १)
दशर्वकालिकसूत्र
तहा फलाइ' पक्काई 7.32 (पाठा. फलाणि पक्काणि -अचू.) पायखज्जाइ नो वए 7.32 (पाठा. पायखज्जाणि-अचू.) तं च होज्ज अकामेण 5.1.111 (पाठा. अकामेण -अच्.)
दुग्गओ वा पओएणं 9.2.19 (पाठा. पतोदेण -अचू.) अनावश्यक अनुस्वार के आगम से छन्दोभंग सूत्रकृतांग (अनुष्टुप् छंद) ___णाणाविहाइ दुक्खाइ' 1.1.1.26, सत्थादाणाइ लोगंसि 1.9.10 ... सत्ता कामेहि माणवा 1.1.1.6, एतेहि तिहि ठाणेहि 1.1.412
एतेहि' दोहि ठाणेहि 1.8.2, ततो वेरेहि रज्जती 1.8.7,
कम्मी कम्मेहि कच्चति 19.4, मेत्ति भूतेहि कंप्पते 1.15.3 ऋषिभाषितानि
कम्ममूलाइ दुक्खाइ 9.1, सविदिएहि गुत्तेहि 26.6, मोहादिएहि हिसति, 41.8, दूतीसंपेसणेहि वा 41.11
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