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के. आर. चन्द्र महण्णवो में कोष सम्बन्धी सुविधा के लिये अपनायी गयी पद्धति का प्रभाव मालूम होता है, ऐसा कहना अनुचित नहीं होगा। ...
1. आवश्यक चूर्णी (श्री ऋषभदेव केसरीमल, रतलाम १९२८) पृ. 1
महानिशीथ की प्राचीनतम प्रति में भी यही पाठ मिलता है ।
2. उदाहरणार्थ - नेइ, नहेण, निसिआ, निद्दए, निसावन्नु, निय, नेहडा, निन्छ।
निवडिआइँ नरू निचु, निज्जि उ, नारायणु । अध्ययन भी अनेक बार मिलता
है- न (335,340, 391), नवि (339), अन्यय न भी (392) । 3 प्राकृत ग्रामर ऑफ हेमचन्द्र ---पी. एल. वैद्य, पूना, 1928 4. सिद्ध हेमशब्दानुशासन, लघुवृत्ति, खण्ड -3 अध्याय-8 (गुजराती) प. बेचरदास दोशी,
युनि. ग्रन्थ निर्माग बोर्ड, अहमदाबाद--1978 5 अपभ्रश व्याकरण (गुजरातो), ह. चू० भायाणी, फार्बस गुजराती सभा, मुंबई
1971
6 वसुदेव हेण्डी, प्रपम खड, श्री जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर, 1930 7. Prakrit Gramnnarials, Motilal Banarasidas, 1972, pp. 19-20.
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