________________
श्रीपश्चास्तिकायसमयसारः ।
१७
पदार्थ – [ एवं ] इस पूर्वोक्त प्रकारसे [ सतः ] स्वाभाविक अविनाशी स्वभावका [ विनाशः ] नाश [ न अस्ति ] नहीं है. [ असतः जीवस्य ] जो स्वाभाविक जीवभाव नहीं है तिसका [ उत्पाद: ] उपजना [ नास्ति ] नहीं है [ तावत् ] प्रथम ही यह जीवका स्वरूप जानना. और [ जीवानां ] जीवोंका [देव मनुष्यः इति ] देव है, मनुष्य है, इत्यादि कथन है सो [ गतिनामः ] गतिनामवाले नामकर्मकी विपाक अवस्थासे उत्पन्न हुवा कर्मजनित भाव है ।
भावार्थ — जीव द्रव्यका कथन दो प्रकार है । एक तौ उत्पादव्ययकी मुख्यतालियेहुये, दूसरा धौव्यभावकी मुख्यतालियेहुये । इन दोनों कथनों में जब धौव्यभागकी मुख्यताकर कथन किया जाय, तब इस ही प्रकार कहा जाता है कि जो जीवद्रव्य मरता है, सो ही उपजता है. और जो उपजता है, वही मरता है । पर्यायोंकी परंपरामें यद्यपि अविनाशी वस्तुके कथनका प्रयोजन नहीं है, तथापि व्यवहारमात्र धौव्यस्वरूप दिखाने के लिये ऐसे ही कथन किया जाता है । और जो उत्पादव्ययकी अपेक्षा जीवद्रव्यका कथन किया जाता है कि और ही उपजै है, और ही विनरौ है, सो यह कथन गतिनामकर्मके उदयसे जानना । कैसें कि जैसे, — मनुष्यपर्याय विनशै है, देवपर्याय उपजै है सो कर्म - जनित विभावपर्यायकी अपेक्षा यह कथन अविरुद्ध है. इसकारण यह बात सिद्ध हुई
कि धौव्यताकी अपेक्षासे तो वही जीव उपजै और वही जीव विनशै है और उत्पादव्ययकी अपेक्षा अन्य जीव उपजै है और अन्यही विनरौ है । यह ही कथन दृष्टान्तसे विशेष दिखाया जाता है । जैसे—एक बडा बांस है, उसमें क्रमसे अनेक पौरी हैं. उस बांसका जो विचार किया जाता है तो दो प्रकारके विचार से उस बांसकी सिद्धि होती है. एक सामान्यरूप बांसका कथन है. एक उसमें विशेषरूप पौरियों का कथन है. जब पौरियों का कथन किया जाता है तो जो पौरी अपने परिणामको लियेहुये जितनी हैं, उतनी ही हैं । अन्य पौरीसे मिलती नहीं हैं. अपने अपने परिमाणलियेहुये सब पौरी न्यारी न्यारी हैं. बांस सब पौरियोंमें एक ही है. जब बांसका विचार पौरियोंकी पृथक्तासे किया जाय, तब बांसका एक कथन आवै नही. जिस पौरीकी अपेक्षासे बांस कहा जाय सो तिस ही पौरीका बांस होता है. उसको और पौरीका बांस नहिं कहा जाता. अन्य पौरीकी अपेक्षा वही बांस अन्य पौरीका कहा जाता है, इस प्रकार पौरियोंकी अपेक्षासे बांसकी अनेकता है और जो सामान्यरूप सब पौरियोंमें बांसका कथन न किया जाय तौ एक बांसका कथन कहा जाता है. इस कारण बांसकी अपेक्षा एक बांस है । पौरीनकी अपेक्षा एक बांस नहीं है. इसी प्रकार त्रिकाल अविनाशी जीव द्रव्य एक है. उसमें क्रमवर्त्ती देवमनुष्यादि अनेक पर्याय हैं, सो वे पर्याय अपने २ परिमाण लिये हुये हैं । किसी भी पर्यायसे कोई पर्याय मिलती नहीं है, सब न्यारी न्यारी हैं । जब पर्यायोंकी अपेक्षा जीवका विचार किया जाता है तो