________________
रायचन्द्रजैनशास्लमालायाम् भावार्थ-जीव १ अजीव २ पुण्य ३ पाप ४ आस्रव ५ संवर ६ निर्जरा ७ बन्ध ८ और मोक्ष ९. ये नव पदार्थ जानने । चेतना लक्षण है जिसका सो जीव है। चेतनारहित जड़ पदार्थ अजीव हैं सो पुद्गलास्तिकाय, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और कालद्रव्य ये पांच प्रकार अजीव हैं। ये जीव अजीव दोनों ही पदार्थ अपने भिन्नस्वरूपके अस्तित्वसे मूलपदार्थ हैं. इनके अतिरिक्त जो सात पदार्थ हैं वे जीव और पुद्गलोंके संयोगसे उत्पन्न हुये हैं। सो दिखाये जाते हैं। जो जीवके शुभपरिणाम होय तो उस शुभपरिणामके निमित्तसे पुद्गलके शुभकर्मरूप शक्ति होय उसको पुण्य कहते हैं । जीवके अशुभपरणामोंके निमित्तसे पुद्गल वर्गणावोंमें अशुभकर्मरूप परिणतिशक्ति होय उसको पाप कहते हैं । मोहरागद्वेषरूप जीवके परिणामोंके निमित्तसे मनवचनकायरूप योगोंद्वारा पुद्गलकर्म वर्गणावोंका जो आगमन सो आस्रव है । और जीवके मोहरागद्वेष परिणामोंको रोकनेवाला जो भाव होय उसका निमित्त पाकर योगोंके द्वारा पुद्गल वर्गणावोंके आगमनका निरोध होना सो संवर है । कर्मोंकी शक्तिके घटानेको समर्थ बहिरंग अंतरंग तपोंसे वर्द्धमान ऐसे जो जीवके शुद्धोपयोगरूप परिणाम, तिनके प्रभावसे पूर्वोपार्जित कर्मोंका नीरस भाव होकर एकदेश क्षय हो जाना उसका नाम निर्जरा है।
और जीवके मोहरागद्वेषरूप स्निग्ध परिणाम होंय तो उनके निमित्तसे कर्मवर्गणारूप पुद्गलोंका जीवके प्रदेशोंसे परस्पर एक क्षेत्रावगाह करके सम्बन्ध होना सो बन्ध है। जीवके अत्यन्त शुद्धात्मभावकी प्राप्ति होय उसका निमित्त पाकर जीवके सर्वथा प्रकार कर्मोंका छूटजाना सो मोक्ष है।
आगे जीवपदार्थका व्याख्यान किया जाता है जिसमें जीवका स्वरूप नाम मात्रकर दिखाया जाता है।
जीवा संसारत्था णिव्वादा चेदणप्पगा दुविधा। उवओगलक्खणा वि य देहादेहप्पवीचारा ॥ १०९॥
संस्कृतछाया. जीवाः संसारस्था निर्वृत्ताश्च चेतनात्मका द्विविधाः ।
उपयोगलक्षणा अपि च देहादेहप्रवीचाराः ॥ १०९ ॥ पदार्थ-[जीवाः] आत्मपदार्थ हैं ते [द्विविधाः] दो प्रकारके हैं। एक तो [संसारस्थाः] संसरमें रहनेवाले अशुद्ध हैं दूसरे [निर्वृत्ताः] मोक्षावस्थाको प्राप्त होकर शुद्धहुये सिद्ध हैं । वे जीव कैसे हैं? [चेतनात्मकाः] चैतन्यस्वरूप हैं [ उपयोगलक्षणाः] ज्ञानदर्शनस्वरूप उपयोग (परिणाम) वाले हैं। [अपि] निश्चयसे [च] फिर कैसे हैं वे दो प्रकारके जीव? [देहादेहप्रवीचाराः] एक तौ देहकरके संयुक्त सो तो संसारी हैं। एक देहरहित हैं ते मुक्त हैं।