Book Title: Panchastikay Samaysar
Author(s): Kundkundacharya, Pannalal Bakliwal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 139
________________ श्रीपञ्चास्तिकायसमयसारः। शुभाशुभ अवस्थावोंमें [किश्चित् ] कुछ भी [रागं] रागभाव [मा करोतु] मत करो। [तेन] जिससे [सः] वह जीव [वीतरागः] सरागभावोंसे रहित होता संता [भव्यः] मोक्षावस्थाके निकटवर्ती होकर [भवसागरं] संसाररूपी समुद्रको [तरति] तर जाता है अर्थात् संसारसमुद्रसे पार हो जाता है। भावार्थ-जो साक्षात् मोक्षमार्गका कारण होय सो वीतराग भाव है सो अरहन्तादिकमें जो भक्ति है वा राग है वह स्वर्ग लोकादिकके क्लेशकी प्राप्ति करके अन्तरंगमें अतिशय दाहको उत्पन्न करै है कैसे हैं ये धर्म राग जैसें चंदनवृक्षमें लगी अग्नि पुरुषको जलाती है. यद्यपि चंदन शीतल है अग्निके दाहका दूर करनेवाला है, तथापि चंदनमें प्रविष्टहुई अमि आताप को उपजाती है. इसीप्रकार धर्मराग भी कथंचित् दुःखका उत्पादक है. इसकारण धर्मराग भी हेय (त्यागने योग्य) जानना । जो कोई मोक्षका अभिलाषी महाजन है सो प्रथम ही विषयरागका त्यागी हो हु. अत्यन्त वीतराग होयकर संसारसमुद्रके पार जावहु । जो संसारसमुद्र नानाप्रकारके सुखदुखरूपी कल्लोलोंकेद्वारा आकुल व्याकुल है. कर्मरूप बाडवाग्निकर बहुत ही भयको उपजाता अति दुस्तर है. ऐसे संसारके पार जाकर परममुक्त अवस्थारूप अमृतसमुद्रमें मग्न होय कर तत्काल ही मोक्षपदको पाते हैं. बहुत विस्तार कहांतक किया जाय, जो साक्षात् मोक्षमार्गका प्रधान कारण है समस्त शास्त्रोंका तात्पर्य है ऐसा जो वीतरागभाव सो ही जयवन्त होहु । सिद्धान्तोंमें दो प्रकारका तात्पर्य दिखाया है. एक सूत्रतात्पर्य एक शास्त्रतात्पर्य जो परंपराय सूत्ररूपसे चला आया होय सो तो सूत्रतात्पर्य है और समस्तशास्त्रोंका तात्पर्य वीतरागभाव हैं. क्योंकि उस जिनेन्द्रप्रणीत शास्त्रकी उत्तमता यह है कि चार पुरुषार्थोंमेंसे मोक्ष पुरुषार्थप्रधान है. उस मोक्षकी सिद्धिका कारण एकमात्र वीतरागप्रणीत शास्त्र ही हैं क्योंकि षड्द्रव्य पंचास्तिकायके स्वरूपके कथनसे जब यथार्थ वस्तुका स्वभाव दिखाया जाता है तब सहजही मोक्षनामापदार्थ सधता है. यह सब कथन शास्त्रमें ही है. नव पदार्थोंके कथन कर प्रगट किये हैं । बंधमोक्षका सम्बन्ध पाकर बन्धमोक्षके ठिकाने और बन्धमोक्षके भेद, स्वरूप सब शास्त्रोंमें ही दिखाये गये हैं और शास्त्रोंमें ही निश्चय व्यवहाररूप मोक्षमार्गको भले प्रकार दिखाया गया है और जिनशास्त्रों में वर्णन कियेहुये मोक्षके कारण जो परम वीतराग भाव हैं, उनसे शान्तचित्त होता है. इसकारण उस परमागमका तात्पर्य वीतरागभाव ही जानना. सो यह वीतरागभाव व्यवहारनिश्चयनयके अविरोधकर जब भले प्रकार जाना जाता है तब ही प्रगट होता है और बांछित सिद्धिका कारण होता है. अन्यप्रकारसे नहीं। - आगे निश्चय और व्यवहारनयका अविरोध दिखाते हैं. जो जीव अनादि कालसे लेकर भेदभावकरवासितबुद्धि हैं. वे व्यवहार नयावलंबी होकर भिन्न साध्यसाधनभावको अंगीकार करते हैं तब सुखसें पारगामी होते हैं. प्रथम ही जे जीव ज्ञानअवस्थामें रहने

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