Book Title: Panchastikay Samaysar
Author(s): Kundkundacharya, Pannalal Bakliwal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 68
________________ ४८ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् औदयिक औपशमिक और क्षायोपशमिक ये तीन भाव कर्मजनित हैं क्योंकि कर्मके उदयसे उपशमसे और क्षयोपशमसे होते हैं. इस कारण कर्मजनित कहे जाते हैं । यद्यपि क्षायिक भाव शुद्ध हैं अविनाशी हैं तथापि कर्मके नाश होनेसे होते हैं, इस कारण इनको भी कर्मजनित कहते हैं । और पारिणामिक भाव कर्मजनित नहीं हैं. क्योंकि वे शुद्ध पारिणामिक भाव जीवके स्वभाव ही हैं. इसकारण कर्मजनित नहीं हैं। और इन पारिणामिकोंके भेद भव्यत्व अभव्यत्व दो भाव हैं, वे भी कर्म जनित नहीं है। यद्यपि कर्मकी अपेक्षा भव्य अभव्य स्वभाव जाने जाते हैं. जिसके कर्मका नाश होना है, सो भव्य कहा जाता है. जिसके कर्मका नाश नहिं होना है सो अभव्य कहा जाता है. तथापि कर्मसे उपजे नहिं कहे जा सक्ते । क्योंकि कोई भव्य अभव्य कर्म नहीं है. इस कारण कर्मजनित नहीं । भवस्थितिके उपरि जैसा कुछ केवल ज्ञानमें प्रतिभास रहा है, जिस जीवका जैसा स्वभाव है तैसा ही होता है, इस कारण भव्य अभव्य स्वभाव भवस्थितिके उपरि है. कर्मजनित नहीं है। ये तीन प्रकारके पारिणामिक भाव स्वभावजनित हैं। आगें इन औदयिकादि पांच भावोंका कर्ता जीवको दिखाते हैं। कम्मं वेदयमाणो जीवो भावं करेदि जारिसयं । सो तेण तस्स कत्ता हवदित्ति य सासणे पढिदं ॥ ५७ ॥ संस्कृतछाया. कर्म वेदयमानो जीवो भावं करोति यादृशकं । स तेन तस्य कर्ता भवतीति च शासने पठितं ।। ५७ ॥ पदार्थ-कर्म वेदयमानः] उदय अवस्थाको प्राप्त हुये द्रव्यकर्मको अनुभवकर्ता [जीवः] आत्मा [यादृशकं भावं] जैसा अपने परिणामको [करोति] करता है [सः] वह आत्मा [तस्य] तिस परिणामका [तेन] उसकारणकर [कर्ता] करनेहारा [भवति होता है [इति] इसप्रकार कथन [शासने] जिनेन्द्रभगवान्के मतमें [पठितं ] तत्त्वके जाननेवाले पुरुषोंने कहा है। भावार्थ-इस संसारी जीवके अनादिसम्बन्ध द्रव्यकर्मका सम्बन्ध है. उस द्रव्यकमका व्यवहारनयकर भोक्ता है. जब जिस द्रव्यकर्मको भोगता है, तब उस ही द्रव्यकर्मका निमित्त पाकर जीवके जीवमयी चिद्विकाररूप परिणाम होते हैं. सो परिणाम जीवकी करतूत है. इसकारण कर्मका कर्ता आत्मा कहा जाता है. इससे यह बात सिद्ध हुई कि जिन भावोंसे आत्मा परिणमता है. उन भावोंका अवश्य कर्ता जानना. कर्ता कर्म क्रिया इन तीन प्रकारसे कर्तृत्वकी सिद्धि होती है. जो परिणमै सो तो कर्त्ता, जो परिणाम सो कर्म, और जो करतूत सो क्रिया कही जाती है ।

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