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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् आगे कहते हैं कि जो जीव मुक्त होय तो उसकी ऊर्ध्वगति होती है और जो अन्य जीव हैं ते छहों दिशावोंमें गति करते हैं।
पयडिहिदि अणुभागप्पदेसबंधेहिं सव्वदो मुक्को। उडुं गच्छदि सेसा विदिसावजं गर्दि जंति ॥ ७३ ॥
संस्कृतछाया. प्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशबन्धैः सर्वतो मुक्तः ।
ऊर्द्ध गच्छति शेषा विदिग्वधं गतिं यांति ॥ ७३ ॥ पदार्थ-प्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशबन्धैः] प्रकृतिबन्ध, स्थितिबन्ध, अनुभागबन्ध प्रदेशबन्ध इन चार प्रकारके बंधोंसे [ सर्वतः] सर्वांग असंख्यातप्रदेशोंसे [मुक्तः] छुटा हुवा शुद्धजीव [उर्द्ध] सिद्धगतिको [गच्छति] जाता है भावार्थ-जो जीव अष्टकर्मरहित होता है सो एक ही समयमें अपने ऊर्द्धगतिखभावसे श्रेणिबद्ध प्रदेशोंकेद्वारा मोक्षस्थानमें जाता है [शेषाः] अन्य बाकीके संसारी जीव हैं ते [विदिग्वा ] विदिशावोंको छोडकर अर्थात् पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण ये चार दिशा और ऊर्द्ध तथा अधः इन छहों दिशावोंमें [गदिं] गति [यांति] करते हैं।
भावार्थ-जो जीव मोक्षगामी हैं तिनको छोडकर अन्य जितने जीव हैं वे समस्त छहों दिशावोंमें ऋजुवक्र गतिको धारण करते हैं. चार विदिशाओंमें उनकी गति नहीं होती।
यह जीवद्रव्यास्तिकायका व्याख्यान पूर्ण हुवा ।
आगें पुद्गलद्रव्यास्तिकायका व्याख्यान करते हैं जिसमें प्रथम ही पुद्गलके भेद कहे जाते हैं।
खंधा य खंधदेसा खंधपदेसा य होंति परमाणू। इति ते चदुव्वियप्पा पुग्गलकाया मुणेयव्वा ॥ ७४ ॥
संस्कृत छाया. स्कन्धाश्च स्कन्धदेशाः स्कन्धप्रदेशाश्च भवन्ति परमाणवः ।।
इति ते चतुर्विकल्पाः पुद्गलकाया ज्ञातव्याः ॥ ७४ ॥ पदार्थ-[स्कन्धाः] एक पुद्गल पिंड तो स्कन्ध जातिके हैं [च] और [स्कन्ध. देशाः] दूसरे पुद्गलपिंड स्कन्धदेश नामके हैं [च] तथा [स्कन्धप्रदेशाः] एक पुद्गल स्कन्धप्रदेश नामके हैं और एक पुद्गल [परमाणवः] परमाणु जातिके [ भवन्ति] होते हैं. [इति] इस प्रकार [ते] वे पूर्वमें कहेहुये [पुद्गलकाया:] पुद्गलकाय जे हैं ते [ चतुर्विकल्पाः] चार प्रकारके [ज्ञातव्याः] जानने योग्य हैं ।