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श्रीपञ्चास्तिकायसमयसारः। भासते हैं ऐसे स्पर्श रस गंध शब्दादिक पुद्गल सूक्ष्मवादर कहलाते हैं ४. और जो स्कन्ध अति सूक्ष्म हैं इन्द्रियोंसे ग्रहण करनेमें नहिं आते ऐसे जो कर्मवर्गणादिक हैं ते सूक्ष्मपुद्गल कहलाते हैं. ५. और जो कर्मवर्गणावोंसे भी अति सूक्ष्म ब्यणुकस्कन्ध ताई जे हैं ते सूक्ष्मसूक्ष्म कहलाते हैं। आगें परमाणुका स्वरूप कहते हैं.
सव्वसिं खंधाणं जो अंतो तं वियाण परमाणू । सो सस्सदो असहो एको अविभागि मुत्तिभवो ॥ ७७॥
- - संस्कृतछाया. सर्वेषां स्कन्धानां योऽन्त्यस्तं विजानीहि परमाणुं ।
स शाश्वतोऽशब्दः एकोऽविभागी मूर्तिभवः ॥ ७७ ॥ पदार्थ-[सर्वेषां] समस्त [स्कन्धानां] स्कन्धोंका [यः] जो [अन्त्यः] अन्तका भेद है [तं] उसको [परमाणुं] परमाणु [विजानीहि ] जानना । अर्थात्-ये जो पूर्व छह प्रकारके स्कन्ध कहे उनमेंसे जो अन्तका भेद (अविभागी खंड) है सो परमाणु कहाता है [सः] वह परमाणु [शाखतः] त्रिकाल अविनाशी है. यद्यपि स्कन्धोंके मिलापसे एक पर्यायसे पर्यायान्तरको प्राप्त होता है. तथापि अपने द्रव्यत्वकर सदा टंकोत्कीर्ण नित्य द्रव्य है । फिर कैसा है वह परमाणु ? [अशब्दः] शब्दरहित है यद्यपि स्कंधके मिलापसे शब्द पर्यायको धरता है तथापि व्यक्तरूप शब्द पर्यायसे रहित है। फिर कैसा है परमाणु ? [एकः] एक प्रदेशी है व्यणुकादि स्कन्धरूप नहीं है । फिर कैसा हैं ? [अविभागी] जिसका दूसरा भाग नहीं ऐसा निरंश है । फिर कैसा है ? [ मूर्तिभवः] सदाकाल रूप रस स्पर्श गन्ध इन चार गुणोंसे भेद लखा जाता है इस प्रकार परमाणुका खरूप जानना । आगें पृथ्वी आदि जातिके परमाणु जुदे नहीं हैं ऐसा कथन करते हैं ।
आदेशमत्तमुत्तो धादुचदुकस्स कारणं जो दु । सो णेओ परमाणू परिणामगुणो सयमसद्दो ॥ ७८॥
संस्कृतछाया.. आदेशमात्रमूर्तः धातुचतुष्कस्य कारणं यस्तु ॥
स ज्ञेयः परमाणुः परिणामगुणः स्वयमशब्दः ॥ ७८ ॥ पदार्थ-[य] जो आदेशमात्रमूर्तः] गुणगुणीके संज्ञादि भेदोंसे मूर्तीक है [सः] वह [परमाणुः] परमाणु [ज्ञेयः] जानना। वह परमाणु कैसा है ? [धातुचतुष्कस्य] पृथिवी जल अनि वायु इन चार धातुवोंका [कारणं] कारण है । ये चार धातु इन परमाणुवोंसे ही पैदा होते हैं । फिर कैसा है ? [परिणामगुणः] परिणमन खभाववाला [वयं अशब्दः] आप अशब्द है किन्तु शब्दका कारण है ।