Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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पृष्ठ संख्या
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विषय
59. बहुत मंत्रियों से होने वाली हानि 60. स्वेच्छाचारी मंत्रियों से हानि 61. राजा व मनुष्य - कर्तव्य 62. मनुष्य का कर्तव्य 63, कैसे मन्त्रियों से हानि नहीं 64. बहुत से मूर्ख मन्त्रियों का निषेद 65. दो मन्त्रियों से लाभ का दृष्टान्त 66. बहुत से सहायकों से लाभ 67. केवल मन्त्री के रखने से हानि 68. आपत्ति काल में सहायकों की दुर्लभता 69. विवेको पुरुषों को आपत्ति से रक्षा पाने के लिए 70. सहायकों का संग्रहण करने से हानि 71. धन व्यय की अपेक्षा जन संग्रह उपयोगी है 72. सहायकों को धन देने से लाभ 73. कार्य पुरुषों का स्वरूप 74. किस समय कौन सहायक होता है 75. मन्त्रणा करने का अधिकार किसे है ? 76. मूर्ख मंत्री का दोष 77. मूर्ख राजा और मूर्ख मन्त्री से हानि । 78. मूर्ख मन्त्रियों का मंत्र ज्ञान 79, शास्त्रज्ञान शून्य मन की कर्तव्यविमुखता 80. सम्पत्ति प्राप्ति का उपाय 81. मूर्ख मन्त्रियों को राजभार देने से हानि 82. कर्तव्य विमुख का शास्त्रज्ञान व्यर्थ है 83. गुणहीन मनुष्य की कटु आलोचना 84. राज मन्त्री के महत्त्व का कारण 85, मंत्र सलाह के अयोग्य कौन ? 86. कृत्रियों की प्रकृति 37. अभिमान करने वाले पदार्थ 88. अधिकारी का स्वरूप 89. धनलम्पटी-राजमन्त्री से हानि 90. पुरुषों की प्रकृति 91. निर्दोष के दूषण लगाने से हानि
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