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१. पक्षपात व एकान्त , १३ ७. कोई भी मत सर्वथा झूठा नहीं ___और ऐसी दृष्टि उत्पन्न हो जाने पर लोक मे प्रचलित कोई भी ७. कोई भी बात सर्वथा मिथ्या नही लगेगी । आगम मे ३६३ मत सर्वथा एकान्त मतो या मान्यताओं का कथन आता है, जिनको झूठा नही हम मिथ्या मत कहते है। पर एक वैज्ञानिक की दृष्टि मे कोई भी मत सर्वथा मिथ्या नही होता। सर्वत्र ही कुछ न कुछ सत्य अवश्य है क्योकि मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति भी बे सिर पैर की कोई बात कहना सुनाई नही देता है । जो कोई भी व्यक्ति कुछ कहता है, वह कुछ अपना अभिप्राय रखकर हो कहता है । यदि उसके अभिप्राय को पढने का प्रयत्न किया जाये, अथवा शब्दो मे न अटककर उसके वाच्य संकेत पर जा कर स्पर्श किया जाये, तो उसकी बात मे छिपी सत्यता स्पष्ट प्रकाशित हो जाती है।
कोई भी शब्द सर्वथा झूठा होना संभव ही नही है। जितने भी शब्द है उनके वाच्यार्थ इस लोक में मौजूद अवश्य है। और इस प्रकार ऐसे दृष्टात जो कि सर्वथा झूठ की सिद्धि के अर्थ 'दिये जाते है, जैसे कि 'गधे का सीग व आकाश पुष्प', वे भी सर्वथा झूठ हो ऐसा नही है । क्योकि भले ही प्राकृतिक संयोग को प्राप्त ऐसा कोई पदार्थ झूठ हो, पर पृथक पृथक उन पदार्थों की सत्ता लोक मे है । और इस प्रकार किसी अपेक्षा से गधे का सीग कह देना भी सत्य हो जायेगा, जैसा कि मेरे स्वामित्व मे पडा यह पैन 'मेरा पैन' ऐसा कहा जाता है, उसी प्रकार यदि गधे को सजाने के लिये उसके सिर पर कृत्रिम रूप सीग रख दिये जाये,जैसे कि आपने कही प्रदर्शनियों मे या अन्यत्र मनुष्य के मुह वाला सर्प देखा है। वह केवल कृत्रिम लाग होती है, प्राकृतिक सत्य नही । कृत्रिम रूपेण वह अवश्य सत्य है । तो गधे के सींग भी कहने में कोई विरोध न होगा, यदि ऐसा - शब्द सुनकर दृष्टि उसी विशेष गधे पर जाये, अन्य पर न जाये तो और संयोग को : कृत्रिम ही समझा जाये प्राकृतिक नही तो। बुद्धि का प्रयोग करें तो शब्दों परसे वक्ता के तात्पर्य को समझा जा सकता है, परन्तु यदि शब्द में ही