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२. शब्द व ज्ञान सम्बन्ध
२. प्रत्यक्ष व परोक्ष ज्ञान
दिखाया, जिससे कि बालक स्पष्ट समझ सके कि कबूतर शब्द किस वस्तु की ओर सकेत कर रहा है । पर यह उसी समय संभव है जब कि उसने वह पक्षी पहिले देखा हो, भले उसका नाम संभवतः वह जान न पाया हो । अब चित्र देखकर वह यह समझ गया कि इसको कबूतर शब्द से वोलकर बताया जाता है । और इसी प्रकार यदि चित्र देखकर भी उसका सशय दूर न हो, अर्थात् वह पदार्थ यदि उसने पहिले देखा न हो, तो गुरु उसे वह पदार्थ ही सामने दिखा देता है या यदि वह पदार्थ दिखाया जाना सभव न हो तो, उसके अनुरूप कोई अन्य पदार्थ दिखाकर उसे सन्तुष्ट कर देता है । जैसे सिंह को बताने के लये बिल्ली को दिखाकर वह इतना बता देता है, कि भाई ! इसी शकल व बनावट का वह जानवर गधे जितना बड़ा होता है । अर्थात् एक वस्तु को बताने के लिये दो दृष्टान्त देकर अनुमान के पट पर लगभग वस्तु के अनुरूप चित्र खीचने का प्रयत्न करता है । तात्पर्य यह है कि तीन प्रकार से उसे उस वस्तु का परिचय दिया जा सकता है । पहिले तो वस्तु दिखाकर, दूसरे वस्तु का चित्र दिखाकर, तीसरे अन्य-अन्य वस्तुओं के आधार पर अनुमान मे परोक्ष चित्रण या उस वस्तु के अनुरूप कुछ रेखायें खेचकर ।
ऊपर के दो उपाय तो तभी संभव हो सकते है जबकि वह पदार्थ सहज दृष्ट हो, पर यदि पदार्थ अदृष्ट व अनुपलब्ध हो तब तो तीसरे मार्ग के अतिरिक्त और कोई आश्रय नही है । जैसे कि मै अमेरिका गया और कोई एक नवीन फल खाकर देखा । यहा लौटकर यदि मै उस फल से आपका परिचय कराना चाहू तो यह तीसरा मार्ग ही अपनाना होगा । पहले दो मार्ग नही अपनाये जा सकते , क्योंकि वह फल न भारत मे उपलब्ध होता है और न ही आपने पहिले उसे कभी देखा है। केवल फल का नाम लेने से आप कुछ न समझ सकेगे । अब मेरे पास एक ही मार्ग रह गया कि में दृष्टातरूप में कुछ ऐसे फलो को छाटकर सामने लाऊ, जो कि उसके रूप रंग गन्ध व स्वाद का किंचित