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२ शब्द वज्ञान सम्बन्ध
२८ ५. वस्तु को खड़ित करके
प्रतिपादन करने की पद्धति कल्पना मात्र है, सभव नहीं है । हा, इसको एक प्रकार अवश्य वम्बई उठाकर ले जाया जा सकता है । इसको पहिले खोलकर इसके टुकड़े टुकड़े कर लीजिये, ऐसे टुकड़े जो कि पृथक पृथक आसानीसे हाथ या क्रेन द्वारा उठाकर गाड़ी मे लादे जा सके । और इस प्रकार कई गाड़ियो मे आगे पीछे लादकर, पहिले पीछे उन गाड़ियों द्वारा वम्बई ले जाकर उसी प्रकार उतार लिए जाये। सारे टुकड़े या खड इकट्ठे हो जाने पर 'पुन उनको पूर्ववत यथा स्थान जोड़ दे। वस मील उठकर चला गया। ___यहा यह बात विचारणीय है कि गाड़ी मे लदान करने के लिये क्या यह नियम है कि पहिले अमुक ही खंड लादा जाय, या गाडियो को वम्बई भेजने के लिये क्या यह नियम है कि अमुक ही गाडी पहिले भेजी जाय ? नहीं, अपनी आवश्यकता के अनुसार कोई भी खड कभी भी लाद दो । नियम कोई नही लगाया जा सकता । हा, वम्बई पहुचने के पश्चात उन्हे यथास्थान ही जड़ना होगा, नही तो मशीन काम न करेगी। यदि थोडा सा भाग मात्र ही पहुँच जाने पर मै आप से कहूँ कि जितना भाग आया है उतना तो फिट करके चाल कार दीजिए, क्यो व्यर्थ हर्ज करते हो, तो क्या यह सभव हो सकेगा? नहीं, पूरा का पूरा मील जव तक फिट न हो जाये तब तक उससे काम नहीं लिया जा सकता। यदि एक गरारी की भी कमी रही तो सारी मशीन बेकार है।
वस इसी प्रकार वक्ता को अपने हृदय कोष में पड़ा वह अदृप्ट पदार्थ, श्रोता के हृदय देश तक पहुचाने के लिये, उस पदार्थ को ज्ञान मे ही खंडित करके टुकड़े टुकड़े कर देना पड़ेगा। फिर एक एक खंड को वचन सेतु के द्वारा श्रोता के कर्ण प्रदेश तक पहुंचाना पड़ेगा। यदि यहा श्रोता वक्ता को सहयोग न दे, अर्थात् कर्ण प्रदेश को प्राप्त उस शब्द के भावार्थ कौ न समझे और उसे समझ कर हृदय कोप तक न ले जाये, तो वक्ता का सारा प्रयास