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१. पक्षपात व एकान्त
५. वैज्ञानिक वन ..
आता है, और क्या ऐसी संकीर्णता मे से कभी भी आज के विज्ञान की उन्नति दृष्टिगत हो सकती थी? आज के विज्ञान का मर्म उदारता है। प्रत्येक वैज्ञानिक कुछ नई बात की खोज करने के लिये तत् सवधी सारा साहित्य जो भी उसे उपलब्ध होता है पढ़ता है, चाहे वह किसी भी देश व व्यक्ति का क्यो न हो । हरेक विद्वान से तत्सबधी चर्चा करके उसके विचारो में से कोई तथ्य निकालने का प्रयास करता है, उसका निराकरण करने का नही। अपनी बुद्धिपर जोर देकर उसके अभिप्राय को समझने का प्रयत्न करता है । “यह बेचारा क्या जाने, क्योंकि इसने मेरे गरु से शिक्षा पाई ही नही, इसलिये इसकी बात सुनना बेकार है," ऐसा विचार स्वप्न मे भी उसको नही आता । पर तू तो तनिक अपनी धारणाओ को पढ कर देख कि क्या तेरी दृष्टि भी वैसी ही है या उससे विपरीत ? .. .
। यदि अब तक नहीं तो अब ऐसी दृष्टि का निर्माण कर, तभी सर्वज्ञता का उपासक कहा जा सकेगा, और कुछ सीख कर अपने जीवन, मे कोई नई बात का अविष्कार कर सकेगा, अन्यथा नही । जिस प्रयोजन को लेकर तू गुरुदेव की शरण मे आया है, वह प्रयोजन स्वत. एक विज्ञान है । अन्तर केवल. इतना है कि आज का दीखने वाला विज्ञान भौतिक है और यह आध्यात्मिक । वह दृष्ट है और यह अदृष्टः । उसके अनुसंधान इन जड़ पदार्थो पर होते है और इसका अनुसंधान जीवन पर । उसकी खोज बाहर मे की जाती है और इसकी खोज अन्दर मे । उसकी प्रयोगशालाओं मे लोहे व बिजली के यत्र रखे है, और इसकी प्रयोगशाला में विचारणाओ व वेदना के यत्र रखे है । इसलिये स्वतत्र दृष्टि से सुन, सरलता से सुन, सरलता से विचार कर, और तथ्य खोजने का प्रयत्न कर । ' शब्द मे अटकने की बजाय शब्द के सकेत पर दृष्टि ले जाने का प्रयत्न कर। वहा विश्व पडा है । शब्द बेचारे मे उतनी सामर्थ्य कहा कि उसका पूर्णरूपेण प्रतिनिधित्व कर सके। . ! .