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क्रियाओमां राखवू जोइतुं सावधानपणुं ॥ (७) १ धार्मिक क्रिया(अनुष्ठान)करतांआ भव संबंधी द्रव्य, स्त्री, पुत्र, वैभव, भोग, यश, कीर्ति आदिनी अभिलाषा करवाथी विषानुष्ठान कहेवाय छे, के जे स्थावर जंगम झेरनी जेम शुभ अन्तःकरणने तत्काल मारनार थाय छे. २ आ भवनी अपेक्षा न होय पण परभव संबंधी देव ऋद्धि चक्रवर्ति आदि वैभव विगेरे अभिलाषा करवाथी गरानुष्ठान थाय छे, के जे संयोग ज झेर कालान्तरे झेरविकारना परिणामनी जेम भवान्तरमा पुण्यक्षय करनार थाय छे. ३ कोईपण जातना फलनी अपेक्षा न होय परन्तु
सन्निपातमां मुझायेल अगर संमूछिम जीवनी प्रवृत्तिनी जेम शून्यचित्ते क्रिया करवाथी अननुष्ठान थाय छे. आ अनुष्ठानमां कायक्लेशादि हेतुथी अकामनिर्जरा थायछे पण मुक्तिनुं विशिष्ट साधन सकामनिर्जरा तो उपयोगप्रवृत्तिना अभावे थती नथी. ४ उत्तम अनुष्ठानना रागथी क्रिया करवाथी त तु - अनुष्ठान थाय छे.