Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
View full book text
________________
R
AA
एसएसस्सस्कार
त्यार पछी.ने आचार्य संघना समुदायमा चैत्यवंदन पूर्वक विधिवडे ते क्षपक (तपस्वी) ने चतुर्विध)
का पयस्रो. आहारनु पच्चखाण कराये ॥ ४५॥
- अहवा समाहि हेनं ॥ सागारं चयतिविदमाहारं ॥ .. तो पाणियंपि पहा ॥ वोसिरियन जहाकालं ॥ ६ ॥
अथवा समाधिने अर्थे त्रण प्रकारना आहारने सागार पणे पचखे स्यार पछी पाणीने पण अवसरे को वोसिराचे, ॥ ४६॥
तो सो नमंतसिरसं ॥ घमंतकरकमलसेहरो विहिणा ॥
खामे सध्व संघं । संवेगं संजणेमाणो ॥ ४ ॥ त्यार पछी ते (अणशण करनार ) मस्तक नमावीने पोताना वे हाथने मस्तके मुकुट समान करीने विधिवडे संवेग पमारतो सर्व संघने खभावे ॥ ४७ ॥
पायरिय नवद्याए ॥ सीसे साइंमिए कुलगणेय ।।
जेमे केई कसाया ॥ सव्ये तिविहेण खामेमि || G ॥ आचार्य, उपाध्याय, शिष्य, कुल अने गणना उपर में जे कोइ कपाय कर्या में सर्वे हुँ त्रिषिधे ! भखमावूछ ।। ४८॥
40414050s...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 154