Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ समस् महुर विरेयल मेसो ॥ कायव्वो फोफलाइ दव्वेहिं ॥ निव्वाविन अग्गी ॥ समाहिमेसो सुदं लदइ ॥ ४२ ॥ फोफलादिक द्रव्ये करीने मधुर औषधनुं विरेचन करावयुं जोइए. केमके एरीते उदरनो अनि डोलवे थके आ अणशणनो करनारो सुखे समाधि पामे ॥ ४२ ॥ जावजीवं तिविदं ॥ प्रादारं वोसिर इदं खवगो || निगो यरि || संघस्स निवेयां कुलाइ ॥ ४३ ॥ अणशण करनार तपस्वी जाव जीव सुधी प्रण प्रकारना आहार ( अशन, खादिम, अने स्वादिम ) ने अहां बोसिरावे छे एम निज़ामणा करावनार आचार्य संघने निवेदन करे ।। ४३ ।। प्राराहण पञ्चश्यं ॥ खमगस्स य निरुवसग्ग पञ्चयं ॥ तो सगो संघेण || होइ सव्वेण कायव्वो ॥ ४४ ॥ ते (तपस्वी) ने आराधना संबंधि सर्व वातः निरुपसर्गपणे प्रवर्ते तो सर्व संधे बसें छप्पन्न वासोश्वासनो काउस्सग करवो ॥ ४४ ॥ पञ्चस्काविंति तनुं ॥ तं ते खवगं चनव्विदाहारं ॥ संघ समुदाय मधे ॥ चिश्वंदण पुव्वयं विहिणा ॥ ४५ ॥ २००० 05.15 1.15 MBPS+

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 154