Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

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Page 11
________________ मूर्ख ॥ ए ॥ 39900000 पोते भीखारी छत उष्ण भोजननी इच्छा करनारो (९७), पोते गुरु छतां धर्मक्रिया करवामां शिथिल आचारवाळा ( ९८ ), कुकर्म करवामां पण लखारहित (९९), अने मश्करीयुक्त वचन बोलनारो (१००) मूर्ख जाणवो. ॥। २६ ।। मूर्खाणां शतमित्येतदुक्तमव्यवहारिणां ॥ जाड्यान्निविडतामेति । येषां पांडित्यखंडता ॥ २७ ॥ एबीरीते जेओनुं अर्धपंडितपणुं मूर्खाइयी निविडपणाने पामे छे, एवा अज्ञानी मूर्खोमाटे आ मूर्खशतक कहेलुं छे. ॥ २७ ॥ ॥ इति मूर्खशतकं सभाषांतरं समाप्तम् ॥ ॥ समाप्तोऽयं ग्रंथो गुरुश्रीमच्चारित्र विजय सुप्रसादात् ॥ श्रीरस्तु ॥ ( आ ग्रंथनी हाथनी लखेली माचीन प्रति मुनिमहाराज श्रीजशविजयजी पासेथी मळी हती, तेपरथी तेना गुजराती भाषांतर सहित आ ग्रंथ छापीने प्रसिद्ध कर्यो छे, अने ते माटे ते उक्त मुनिमहाराजनो अहीं उपकार मानवामां आवे छे.) शतकम् ॥ ए॥

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