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सीसोदियांरी ख्यात आउर नयर नरेस, माल मांडव उग्रावै, घर बैठां डर हूंत, भेट गुज्जरह पठावै । आठ ही पोहर आलू भए, तयण नींद कोय न करे, गहलोत गजां दळ चालतां, अवर राय ओद्रक मरै ॥३॥
रावळ आलूरी ठाकुराई गढ आहोर हुई। तिका' आहोर उदैपुरसूं कोस १० झालांवळी सादड़ी कनै छै । पीढयांरी विगत - रावळ आलू
रावळ करनादित ,, सीहो
, भादु " सकतकुमार
" गानड़ सालीवाहन
हंस नरवाहन
जोगराज अंबापसाव
वैरड , कीरतब्रह्म , नरदेव
, श्रीपुंज उत्तम
, करण रावळ करण श्रीपुंजरो, तिणरै' दोय बेटा हुवा – राहप, तिकण रांणाई दी। चीतोड़ पाट'। माहपनू रावळाई दी । वागड़ पाट । रावळ वैरड़रो कवित - वैरड जोगराजरो -
गूजरवै नह नमै, नमै नह डाहल रायह, डाहाल श्रब चित, लीध संभर बैंचायह ।
, वैरसी
1 वह । 2 पास । 3 अंबाप्रसाद । 4 उसके । 5 जिसको । 6, 7. चित्तोड़की गद्दी. और 'राना'को उपाधि दी गई। 8 वागड़की गद्दी और रावलकी पदवी दी गई।
आहोर नगरका नरेश रावल आलू मांडवपतिसे करके रूपमें द्रव्य प्राप्त करता है और गुर्जरपति तो डरके मारे घर बैठे ही भेंट भेज देता है। आलूके भयसे आठों पहर शत्रु नींद नहीं ले सकते । गहलोतके हाथियोंके दलके चलनेसे अन्य राजा लोग भयसे घबरा कर ही मर जाते हैं ॥३॥
कवित्तका अर्थ - रावल वैरड़न न तो गुजरात और न डाहलके राजाको अपना सिर झुकाया । परन्तु उल्टा डाहालुओंसे सांभरका बँट लेकर उन सभीको बड़ी चिन्तामें डाल दिया ।