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मुंहता नैणसीरी ख्यात
राव पनि ग्रह रहे. राव पोहरै नित जागै, राव तेग* गहि पुळे, राव लुळपावै लागे । गज चड रथ चड तुरिय चड, रावन को मांडत रंण, चितवै च्यार चक्क तणा, सहू राव बापा सरण ॥ १ ॥
रावळ खूमांण वापारो' - तिणरो' कवित -
बिनै लख्ख पायक्क, लख्ख मत्ता तोखारह, सहंस एक छत्रपती हुये मह दरबारह | खड़े सेन खरहंड धूण लीधी धर धारह,
परमारां दळ पहट, दीघ प्रसणां पाहारह | पंचास लख्ख मालवपती, मेवाड़े सोह गांजियो, खूमांण रात्र वापै-तणै, सिद्धराव भड़ भांजियो ॥ २ ॥
कवित रावळ अलु - मेंहदरारो
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तीन लख्ख तोखार, हसत सो तीन तयासी,
पंच लख पायक्क, करें ओळग मेवासी ।
1 वापाका पुत्र रावल खूंमाण 1 2 उसके सम्बन्धका । 3 अल्लट महेन्द्र |
कई हाथमें पान लिये खड़े रहते हैं, कई रातमें जग कर पहरा देते हैं, कई रावलका शस्त्र पकड़ कर उसके आगे - आगे चलते हैं, कई झुककर उसके चरणोंका स्पर्श करते हैं । और हाथी, घोड़े और रथों पर चढ़नेवाले कोई भी राजा रावल वापासे युद्ध रचनेका तो साहस ही नहीं करते । अपितु चारों दिशाओंके समस्त राजा लोग रावल बापाकी शरण में रहने की इच्छा करते हैं ॥ १ ॥
कवित्तका अर्थ रावल खूंमाणको सेनामें दो लाख पादातिक और एक लाख पुष्ट घोड़े हैं । एक सहत्र राजा लोग जिसके दरवारकी शोभाको बढ़ाते हैं । उसने अपनी सेनाके साथ तीव्र गतिले चढाई करके और तलवारसे युद्ध करके पृथ्वीको जीता । परमारोंके दलका नाश कर शत्रुओं पर प्रहार किया । मालवपतिके पास पचास लाख सेना थी उस सबका नाश कर दिया । ऐसे रावल वापाके पुत्र खंमाणने वीर सिद्धरावको भी
मार भगाया ॥ २ ॥
रावल आलूको सेनामें तीन लाख घोड़े, तीन सौ तयासी हाथी और पांच लाख पादातिक हैं और मेवासी लोग जिसको सेवामें रह कर प्रशंसा करते हैं ।
* यहां 'ते' अशुद्ध प्रतीत होता है, क्योंकि कोई भी राजा अपना शस्त्र किसीको नहीं सौंपता । इसके स्थान 'तुरंग' शब्द उपयुक्त है और यही संगत भी है । 'तुरंग'म एक मात्रा बढ़ती है अतः 'तुरंग' किम्वा 'तुरंग' होना चाहिये ।