Book Title: Mudra Vignan Author(s): Nilam P Sanghvi Publisher: Pradip Sanghvi View full book textPage 9
________________ हाथ में विशेष प्रकार की प्राण ऊर्जा, विद्युत शक्ति, इलेक्ट्रिक तरंग और जीवनी शक्ति (ओरा) निरंतर निकलती रहती है । विभिन्न अंगुलियों की मुद्राएँ, शरीर की चेतना शक्ति के रिमोट कंट्रोल के बटन की तरह काम करती हैं । मुद्रा करने के सामान्य नियम : पांच तत्त्वों के संतुलन से मनुष्य स्वस्थ रह सकते हैं। अंगूठे के अग्रभाग पर दूसरी अंगुली के अग्रभाग को रखने से उस अंगुली का तत्त्व बढ़ता है और अंगुली के अग्रभाग को अंगूठे के मूल पर लगाने से वह तत्त्व कम होता है। १. I २. हर कोई स्त्री पुरुष, बालक - वृद्ध और रोगी - निरोगी मुद्रा कर सकते हैं । बायें हाथ से मुद्रा करने से शरीर के दाहिने भाग पर असर होता है और दाहिने हाथ से करने से शरीर के बायें भाग पर असर होता है । ३. मुद्रा करते समय अंगुली और अंगूठे का स्पर्श सहज होना चाहिए । अंगूठे से हल्का सहज रुप से दबाव देना चाहिए और दूसरी अंगुलियाँ सीधी और एक दूसरे से लगी रहनी चाहिए और हथेली आसमान की ओर रहनी चाहिए। अगर अंगुलियाँ सीधी न रहें तो आरामपूर्वक हो सके इतनी सीधी रखने की कोशिश करनी चाहिए, धीरे-धीरे बीमारी दूर होने से अंगुलियाँ सीधी होती जाएँगी और मुद्रा भी ठीक से होगी । 1 ४. हर मुद्रा ४८ मिनट तक करनी चाहिए । अगर एक साथ न हो सके तो सुबहशाम १५-१५ करके ३० मिनट तक एक मुद्रा करनी चाहिए । सिर्फ वायुमुद्रा भोजन के बाद तुरंत कर सकते हैं, जिससे गैस की तकलीफ दूर हो सकती हैं । ५. धार्मिक उपासना या साधना बढ़ाने के लिए मुद्राओं का प्रयोग करना हो तो मंत्र के साथ योग्य दिशा-आसन और निर्धारित समय पर करने से ज्यादा लाभ होता है । मुद्राएँ पद्मासन, वज्रासन और ध्यान के दरम्यान करने से ज्यादा लाभ होता 1 है। अगर न हो सके तो आसन, या कुर्सी पर बैठ कर भी किया जा सकता हैं ।Page Navigation
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