Book Title: Mudra Vignan
Author(s): Nilam P Sanghvi
Publisher: Pradip Sanghvi

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ ३ आकाशमुद्रा : मध्यमा की अंगुली के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाकर, शेष तीनों अंगुलियों को सीधी रखते हुए आकाशमुद्रा बनती है । लाभ : • ध्यान करते वख आकाशमुद्रा करने से भावधारा निर्मल होती है । ज्ञानकेन्द्र (सिर के अग्रभाग, सहस्त्रारचक्र) पर प्रकंपन के अनुभव होते है । दिव्यशक्ति के साथ अनुसंधान होने का अनुभव होता है । इस मुद्रा के अभ्यास से स्वयं-शक्ति और जागृतता का विकास होता है। हड्डियों की कई बीमारियाँ मे लाभदायक है । इस मुद्रा से केल्सियम की पूर्ति होती है इसलिए हड्डियाँ मजबूत बनती है । स्टीरोइडस और कोर्टीझन लेनेवाले दर्दी को उस दवाई की आडअसर से बचाती है । दाँत की कोई भी तकलीफ दूर होकर दांत मजबूत बनते हैं । उबासी लेते वखत अगर जबड़ा जम जाये तो इस मुद्रा से ठीक होता है इसलिए उबासी लेते वख्त मध्यमा से चुटकी बजायी जाती है। मध्यमा अंगुली और हृदय का एक दुसरे के साथ संबंध होने से हृदय के कई रोग जैसे रक्तदाब, अन्जाइना पेइन, अनियमित पल्स रेट में यह मुद्रा लाभदायक है । अगर हृदय की कोई बीमारी हो तब यह मुद्रा ठीक से नहीं होगी, पर अभ्यास से मुद्रा भी ठीक होगी और तकलीफ भी दूर हो सकती है। कान की बीमारी अगर शून्यमुद्रा से ठीक न हो तो साथ में आकाशमुद्रा भी करनी चाहिए। माला के मनको को अंगूठे पर रखकर मध्यमा के अग्रभाग से फेरने से मन की समृध्धि, ऐश्वर्य और भौतिक सुख मिलता है । कषायमुक्ति और मोक्ष अभिलाषी

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66