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९ जलोदरनाशक मुद्रा :
कनिष्ठिका के अग्रभाग को अंगठे के मूल भाग पर रखकर अंगूठे से उसके पर हल्का सा दबाव देते हुए, शेष अंगुलियाँ सीधी रखते हुए जलोदरनाशक मुद्रा बनती है।
लाभ :
• जलतत्त्व के बढने से जो बीमारियाँ होती हैं, इसमें इस मुद्रा से राहत
मिलती है। जलोदर की बीमारी में खास तोर से असरकारक होने से ही इस मुद्राका नाम जलोदरनाशक मुद्रा है।
इस मुद्रा से हाथ में, पैर में, या मुँह पर सूजन हो तो दूर हो सकती है । • फाईलेरिया - एलीफन्टायसीस (हाथीपगा) और पेट में पानी भर गया हो तो दूर
होता हैं।
नोट : बीमारी दूर हो तब तक नियमित यह मुद्रा करनी चाहिए क्योंकि इसका
असर धीरेधीरे अवश्य होता है ।