Book Title: Mudra Vignan
Author(s): Nilam P Sanghvi
Publisher: Pradip Sanghvi

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Page 29
________________ ११ अपानवायुमुद्रा : I अपानमुद्रा और वायुमुद्रा मिलाकर अपानवायु मुद्रा बनती है । वायुमुद्रा करके (तर्जनी के अग्रभाग को अंगूठे के मूल से लगाकर) मध्यमा और अनामिका के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से लगाकर अंगूठे से हल्का सा दबाव देते हुए, कनिष्ठिका को सीधी रखते हुए अपानवायु मुद्रा बनती है । लाभ : • • वायुमुद्रा और अपानमुद्रा दोनों मुद्राओं का फायदा इस एक मुद्रा से होता है। इस मुद्रा से खास तौर से हृदय पर असर होता है । अचानक हृदय के हमले के वख्त, अन्जाइना पेईन में और हाय ब्लडप्रेशर के वख्त यह मुद्रा करने से प्रभावशाली इन्जेक्शन या सोरबिट्रेट दवा का काम होता है । इसलिए इस मुद्रा को मृतसंजीवनी माने मरे हुए को जीवनदान देने की मुद्रा कहलाती है । I इस मुद्रा से हृदय में घबराहट, हृदय की मंदगति, हार्टबीट्स का चूकना, पेट के वायु हृदय तक पहुंचकर तकलीफ दे तब और हृदय के कोई भी रोग में नियमित १५-१५ मिनट सुबह-शाम करने से राहत मिलती है और हृदय शक्तिशाली बनता है। जागरण, मानसिक चिन्ता, अधिक परिश्रम, रक्तसंचय की गडबड के कारण से होनेवाले सिर का दर्द हो, तो दूर होता है । शरीर के कोई भी वायु और पेट के वायु से होते हुए कोई भी दर्द में राहत मिलती है। एसीडीटी में राहत मिलती है। शरीर का मल और विजातीय तत्त्व दूर होते हैं । हाथ-पैर का ज्यादा पसीना दूर होता है । १० से १५ मिनट इस मुद्रा के प्रयोग से बंद पिशाब शुरु होता है २२

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