Book Title: Mudra Vignan
Author(s): Nilam P Sanghvi
Publisher: Pradip Sanghvi

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Page 46
________________ २५. ३ पृथ्वीसुरभि मुद्रा सुरभि मुद्रा करके दोनों अंगूठे के अग्रभाग को अनामिका के मूल भाग पर लगाकर पृथ्वी सुरभि मुद्रा बनती है। लाभ : • • पृथ्वीसुरभि मुद्रा में अग्नितत्त्व और पृथ्वीतत्त्व का संयोजन होने से पृथ्वीतत्त्व के बढ़ने के या कमी के रोग में राहत मिलती है । कफ प्रकृतिवाले के लिए उपयोगी मुद्रा है । पाचनक्रिया संबंधी या पेट के दर्द में लाभदायक है । इस मुद्रा से शक्तिशाली, जागृतवान बन सकते है और शरीर की जड़ता दूर होकर भारीपन दूर होता है । पृथ्वी सुरभि मुद्रा नियमित करने से षट्चक्र का भेदन होता है । यह मुद्रा करने के बाद तुरंत ज्ञानमुद्रा करनी चाहिए जिस से शक्ति उत्पन्न होने के बाद उर्ध्वगामी बन सके । ३९

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