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लाभ: • सभी नाडियों का संचालन अच्छी तरह से होता है। • जठराग्नि प्रज्वलित होकर, पाचनक्रिया व्यवस्थित होती हैं ।
क्षय और कुष्ठरोग में फायदा होता है। • क्लेश और कषाय दूर होकर शरीरकी कान्ति बढती है । • इन्द्रियो के माध्यम बंध होने से वृतियाँ शांत होती हैं । २९.२ महाबंध मुद्रा : बाये पैर को घुटने से मोडकर एडी से योनिमार्ग (शीवनी) पर दबाव देते हुए, दाहिना पैर घूटने से मोडकर, बाये पैर के जंघापर रखते हुए, मेरुदंड सीधा रखते हुए, नवद्वार बंध कर के महाबंधमुद्रा बनती है । लाभ: • सभी नाडियों का संचालन ठीक तरह से होता है । • प्राणवायु का उर्ध्वगमन होता है। • प्राण का प्रवाह (सुषुम्ना) नाडी में शुरू होता है । २९.३ महावेद मुद्रा : पद्मासन कर के, मूलबंध कर के, दोनों हाथ की हथेलियों को जमीन पर थापे के पास रखकर, मेरुदंड सीधा रखते हुए हाथो को सीधा याने कोहनी को बिना मोडे जमीन पर ताड़न करे । ताड़न याने पालथी लगाकर जमीन पर ४-५ बार लगायें यह ताड़न महाबंध मुद्रा में ज्यादा लाभदायक होता है लेकिन इस मुद्रा में मूलबंध नहीं होता है। लाभ: • त्वचा की स्थिति स्थापकता ज्यादा लम्बे अरसे तक रहती है । • बाल जल्दी सफेद नहीं होते है ।
वृध्धावस्था के कंपन से बच सकते है ।