Book Title: Mudra Vignan
Author(s): Nilam P Sanghvi
Publisher: Pradip Sanghvi

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Page 43
________________ २४ सुकरी मुद्रा : पाँचो अंगुलियों के अग्रभाग को एक दूसरे से मिलाकर, अंगूठे के अग्रभाग (अंगूठे का नाखून) जमीन की और रहे और चारों अंगुलियों के नाखून आसमान की ओर रहे, याने हथेली के पीछे का हिस्सा मुँह की ओर रहते हुए सुकरी मुद्रा बनती है। समन्वय या समानमुद्रा की तरह लेकिन विपरीत रूप से सुकरी मुद्रा बनती है। इस मुद्रा से भुंड या सुव्वर के मुँह की तरह आकार बनता है इसलिये इसे सुकरीमुद्रा कहते है। लाभ : इस मुद्रा से पाँचो तत्वो के मिलन से इनका संतुलन एक ही जगह पर होने से मंत्रशक्ति के प्रयोग की शक्ति का कोई सामना नही कर पाता है। यज्ञ दरम्यान अगर इस मुद्रा से आहुति दी जाती है तो खास ख्याल रखें कि या तो वह यज्ञ तांत्रिक विद्या, धारण, मारण या उचाटन के लिए किया जा रहा हो या व्यक्ति अज्ञानवश करता हो तो उसे समझाना चाहिए, नहीं तो यज्ञ का बुरा असर हो सकता है। ३६

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