Book Title: Mudra Vignan
Author(s): Nilam P Sanghvi
Publisher: Pradip Sanghvi

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Page 32
________________ • यह मुद्रा करने से महिलाएं ब्रह्मचर्य का पालन आसानी से कर सकती है। नोट : • इस मुद्रा से शरीर में उष्णता बढ़ती है इसलिए इस मुद्रा के प्रयोग दरम्यान प्रवाही याने पानी, फलों के रस, दूध, घी, छाछ, ज्यादा लेना चाहिए । पित्त प्रकृतिवाले यह मुद्रा ज्यादा न करें क्योंकि इससे पित्त बढता है, एसीडीटी बढ़ती है, अम्लता बढ़ती है, चक्कर आते है, गला सूखता है या शरीर में जलन होती है। • पेट में अगर अल्सर हो तो यह मुद्रा न करें । यह मुद्रा तकलीफ हो तब तक ही करनी चाहिए । १४ योनिमुद्रा : दोनो हाथ नमस्कार मुद्रा में रखकर दोनो हाथों की तर्जनी के अग्रभाग मिलाकर रखना है, फिर दोनो मध्यमा को तर्जनी के ऊपर अंगूठे के पास रखना है । दोनो अंगूठे एक दूसरे के आसपास रखते हुए, दाहिने हाथ की अनामिका, बायें हाथ की कनिष्ठिका के अग्रभाग को लगाते हुए, दाहिने हाथ की कनिष्ठिका को बायें हाथ की अनामिका के अग्रभाग से लगा के योनिमुद्रा बनती है । लाभ: • यह मुद्रा करने से स्त्रीके योनि का आकार बनता है । इस मुद्रा से पुरुष ब्रह्मचर्य का पालन आसानी से कर सकते है । २५

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