Book Title: Mudra Vignan
Author(s): Nilam P Sanghvi
Publisher: Pradip Sanghvi

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Page 31
________________ १३ लिंग मुद्रा : दोनो हाथ की अंगुलियाँ आपस में फँसाकर बाँया अंगूठा सीधा रखते हुए, पीछे की तरफ दायें अंगूठे के मूल पर दाहिने अंगूठे से हल्का दबाव देकर, सभी अंगुलियाँ के अग्रभाग से हथेली के पीछे के पोइन्ट दबाते हुए लिंगमुद्रा या अंगुष्ठ मुद्रा या शिवलिंग मुद्रा बनती है । हाथ बदलकर भी यह मुद्रा कर सकते है, तब दाहिना अंगूठा सीधा रहता है । जो ज्यादातर काम बायें हाथ से करते है उसे दाहिना अंगूठा सीधा रखना चाहिए और जो दाहिने हाथ से काम करते है उसे बाया अंगूठा सीधा रखना चाहिए। लाभ : लिंगमुद्रा करने से शरीर में गर्मी बढती है इसलिए ठंड लगती हो तब राहत मिलती है। कितनी भी ठंड में यह मुद्रा करने से शरीर में पसीना आ जाये इतनी गरमी पेदा होती है। इस मुद्रा से शरीर में गर्मी बढ़ती है इसलिए कफ के सभी दोष जैसे खांसी, जुकाम, सायनस, दम, अस्थमा, निमोनिया, प्लुरसी, टी.बी. आदि सर्दी के कोई भी हठीले दर्द दूर होते हैं । • ऋतु बदलने से जो तकलीफें होती है, उसमें राहत मिलती है। वातानुकूल परिस्थिति में बैचेनी हो तब इस मुद्रा से फायदा होता है । इस मुद्रा से पाचनशक्ति अच्छी होती है । शरीर की चर्बी कम होकर शरीर सप्रमाण बनता है । इसके साथ सूर्यमुद्रा करने से जल्दी परिणाम मिलता है । मासिकस्त्राव कम होने पर या समय के पहले बंद हो जाये तब इस मुद्रा से असर होता है । साथ में सूर्यमुद्रा भी करनी चाहिए । नाभि अपनी स्थान से हट गयी हो तब इस मुद्रा से अपने स्थान पर वापस आती है। २४

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