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पेट के विभिन्न अवयवो की क्षमता का विकास होता है। • दांत के दर्द और दोष दूर होते हैं। • शरीर का तापमान संतुलित रहता है। • गुदा के स्नायुओं के दोष दूर होते हैं । • किसी भी प्रकार के वात के रोग में राहत मिलती हैं । • वात के रोग जो सिर्फ वायुमुद्रा से ठीक न हो तो इस मुद्रा से ठीक होते है।
१२ किडनी-मूत्राशय मुद्रा : अनामिका और कनिष्ठिका के अग्रभाग को अंगूठे के मूलभाग पर लगाकर दोनों अंगुलियों पर अंगूठा रखकर हल्का सा दबाव देकर शेष दो अंगुलियाँ (तर्जनी और मध्यमा) सीधी रखते हुए किडनी मुद्रा एवम् मूत्राशय मुद्रा बनती है । बंदूक की निशानी जैसे बनता है। लाभ: • जलोदरनाशक मुद्रा के सभी लाभ मिलते है और किडनी की किसी भी बीमारी
में राहत मिलती है। बीमारी ठीक न हो तब तक नियमित करनी चाहिए ।