Book Title: Mudra Vignan
Author(s): Nilam P Sanghvi
Publisher: Pradip Sanghvi

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Page 39
________________ २० प्रज्वलिनी मुद्रा : बायें हाथ की कोहनी के उपर के हिस्से पर दायें हाथ की कोहनी रखकर दाहिना हाथ इस तरह घुमाकर रखें कि दोनों हथेलियाँ एक दूसरे से मिले और दोनों अंगूठे नाक के सामने रहे और नजर दोनों अंगूठे पर एकाग्र करते हुए प्रज्वलिनी मुद्रा बनती है। हाथ बदल के भी यह मुद्रा की जाती है । लाभ: यह मुद्रा करने से हाथ से गरुडासन होता है, जिस से गरुड जैसी तीक्ष्ण दृष्टि होती है और आँखों की रोशनी बढ़ती है। • इस मुद्रा से एकाग्रता, ज्ञान और मेधाशक्ति का विकास होता है, इसलिए विद्यार्थियों के लिए लाभदायक है । थोडे समय करने से भी लाभ मिलता है।

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