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इस मुद्रा से शरीर में प्राणशक्ति का ऐसा संचार होता है कि जैसे शरीर का डायनेमो शुरु हो गया हो । प्राण के प्रकंपनो शरीर के हरएक अवयव में अनुभव होता है। इस मुद्रा से रक्तवाहिनी में कोई रुकावट हो तो दूर होती है और रक्तसंचार की शुद्धि होती है । शरीर में स्फूर्ति, आशा, उमंग और उत्साह पैदा होता है। कमजोर और शारीरिक तौर से दुर्बल व्यक्ति के लिए यह खास मुद्रा है । इससे इतनी शक्ति पैदा होती है कि कमजोर व्यक्ति शारीरिक और मानसिक दृष्टि से शक्तिशाली बनकर रोग के संक्रमण से दूर रह सकता हैं । इस मुद्रा से विटामिन्स की कमी दूर हो सकती है ।
आँखो की रोशनी बढ़ती है और आँखों की किसी भी बीमारी में लाभदायक है। नस या स्नायु के खींचाव में राहत मिलती है । पैर का दर्द दूर होता है । सिर या शरीर के कोई भी अवयव का सूनापन दूर होता है। पेरालेसिस के बाद की स्थिति में लाभदायक हैं । जब भी थकान लगे तब यह मुद्रा करने से थोड़ी ही देर में शरीर में नवशक्ति का अनुभव होकर थकान दूर होती है । स्नायुमंडल सशक्त बनता है। प्राणमुद्रा से भूख-प्यास की भावना लुप्त होती है इसलिए उपवास के वख्त खाने पीने की इच्छा नियंत्रण में आ सकती है । एकाग्रता का विकास होता है। डायबटीस (मीठी पिशाब) के लिए प्राणमुद्रा और अपानमुद्रा साथ में करनी
चाहिए। • नींद न आने की बिमारी में ज्ञानमुद्रा और प्राणमुद्रा साथ में करनी चाहिए । नोट : कोई भी दो मुद्रायें साथ में करने का उल्लेख हो तब १५ मिनिट दोनों हाथों
से एक ही मुद्रा करनी चाहिए ओर फिर तुरंत दोनों हाथों से जो दूसरी मुद्रा बतायी हो वह १५ मिनट करनी चाहिए।
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