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२ वायुमुद्रा : तर्जनी के अग्रभाग को अंगूठे के मूल पर लगाकर अंगूठे से उसके पर हल्का सा दबाव रखते हुए और दूसरी अंगुलियाँ सीधी रखते हुए वायुमुद्रा बनती है । वायुमुद्रा वज्रासन में बैठकर करने से तुरंत और ज्यादा लाभ मिलता है। लाभ: • शरीर में वायु उत्पन्न होकर, जिस जगह पर जमता है वहाँ वात के रोग होते
हैं । इस प्रकार के वायु के सभी रोग में इस मुद्रा करने से फायदा होता है । खाना खाने के बाद बैचेनी या गेस की तकलीफ हो तब तुरंत वज्रासन में बैठकर यह मुद्रा करने से राहत मिलती है। वायु के रोग जैसे कपंवा (पारकीन्सन), सायटिका, लकवा (पेरेलिसीस), सर्वाईकल स्पोडिंलाइसीस, घुटनों के दर्द में राहत मिलती है। वातजन्य गर्दन के रोग में अगर बायीं ओर तकलीफ हो तो दाहिने हाथ से और दाहिनी ओर तकलीफ हो तो बाये हाथ से और अगर पूरी गर्दन का दर्द हो तो दोनों हाथ से वायुमुद्रा करके, मणीबंध से हाथ सर्कल में घुमाने से तकलीफ दूर होती है। वायु के हिसाब से पैदा होनेवाली मन की चंचलता इस मुद्रा से दूर होती है और
इससे एकाग्रता आती है। विशेष : अंगूठे के मूल भाग पर जहाँ तर्जनी का दबाव आता है वहाँ ऐसे बिन्दु
है जो इस मुद्रा से पूरे शरीर को संतुलन और स्वस्थता प्रदान करता है। नोट : यह मुद्रा ३० मिनट तक कर सकते हैं । जरुरत हो तो दिन में २ या
३ बार १५-१५ मिनट तक कर सकते है । जब दर्द दूर हो जाये और वायु सम हो जाये तब इस मुद्रा का प्रयोग बंद कर देना चाहिए ।