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मुद्राओंका विवेचन
१. ज्ञानमुद्रा : तर्जनी के अग्रभाग और अंगूठे के अग्रभाग को मिलाकर, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका, अंगुलियाँ को एक साथ सीधी रखते हुए ज्ञानमुद्रा बनती है । लाभ: • यह मुद्रा मस्तिष्क के ज्ञानतंतु को क्रियावंत करती है । मन शांत होता है और
ज्ञान का विकास होता है। मानसिक एकाग्रता, यादशक्ति और प्रसन्नता बढ़ती हैं। आध्यात्मिकता, स्नायुमंडल की क्षमता और ध्यान में प्रगति होती है। मस्तिष्क के कोई भी रोग जैसे पागलपन, चिडचिडापन, अस्थिरता, गभराहट, अनिश्चितता, उन्माद, बैचेनी, डीप्रेशन, फिट की बिमारी, चंचलता और व्याकुलता
दूर होती है। • क्रोध, उत्तेजना, आलस्य, भय जैसे मानसिक तनाव दूर होते हैं ।
अनिद्रा के रोग में ज्ञानमुद्रा रामबाण उपाय है । जिसे ज्यादा नींद आती हो उनकी नींद संतुलित होती है । पुरानी अनिद्रा की बिमारी हो तो ज्ञानमुद्रा और प्राणमुद्रा साथ करनी चाहिए।
शरीर की पिच्युटरी और पिनियल ग्रंथिओं के स्त्राव नियंत्रण में रहते हैं। • अविकसित बुधरेखा और शुक्र के पर्वत का विकास होता है । • इस मुद्रा को व्याख्यान और सरस्वती मुद्रा भी कहते है क्योंकि इस मुद्रा से स्वयं
का ज्ञान और पुस्तक का ज्ञान बढ़ता है। • माइग्रेन जैसे सिरदर्द के लिए ज्ञानमुद्रा के साथ प्राणमुद्रा करनी चाहिए ।