Book Title: Mudra Vignan Author(s): Nilam P Sanghvi Publisher: Pradip Sanghvi View full book textPage 5
________________ मुद्राओं के प्रयोग करते समय मुद्रा करने का प्रयोजन स्पष्ट होना चाहिए । एकाग्रता से प्रयोग करने से निश्चित लाभ होता है । जैसे कर्मवर्गणा, भाषा वर्गणा और ध्वनि के तरंगे चारों ओर फैली हुई है इसी तरह अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी और जल जैसे पंच तत्त्व भी चारों ओर फैले हुए है, अपनी आवश्यकता और शक्ति के अनुसार प्रयोग कर के यह तत्त्व प्राप्त और अनुभव किया जा सकता है। इस पुस्तकमें पाँच नमस्कार मुद्राओं का भी समावेश किया है जिसके प्रणेता मुनिश्री किशनलालजी हैं | वे तेरापंथ संप्रदाय के गणाधिपति तुलसीजी और आचार्य महाप्रज्ञजी के विद्वान और साधनाशील शिष्य हैं । वे प्रेक्षाध्यान, जीवनविज्ञान, अध्यात्मयोग और नैतिक शिक्षाकें शिबिरों के निर्देशक और व्याख्याकार हैं | उनकी दूसरी पुस्तकें जैसे आसन-प्राणायाम, योगासन, यौगिक क्रिया, साधना प्रयोग और परिणाम, पढ़ने योग्य हैं । मुनिश्री किसनलालजी, रिटायर्ड - न्यायाधीश और प्रेक्षाध्यान के मूधन्य प्रशिक्षक श्री. चांदमल बोराजी, ध्यान साधना के गहरे अभ्यासी एडवोकेटश्री. रमेशभाई अग्रवाल, मुद्राओं के निष्णात - डॉ. सुरेशभाई सराफ, मातृतुल्य प्रशिक्षका - स्व. सुशीलाबहन नगीनभाई शाह, प्रकाशन सहायता के लिए पितृतुल्यश्री. मोहनभाई शाह, हिन्दी भाषांतर के लिए स्नातकेतर शिक्षक (हिन्दी) केन्द्रीय विद्यालय - श्री. श्रीकांत कुलश्रेष्ठ, व्यक्तित्व विकास शिबिर के प्रणेता और आयोजक - श्रीमती जयश्रीबहन भट्ट, इस पुस्ततके प्रकाशन के लिए श्री. प्रदीप संघवी की मैं बहुत ऋणी हूँ | मैंने गुजराती में मुद्राविज्ञान पुस्तक लिखी है उसका हिन्दीमें अनुवाद करके हिन्दीभाषी पाठकों तक पहुँचानेकी यह मेरी नम्र कोशिष हैं। हिन्दी में यह पुनः पुनरावृति की सफलता के लिए मैं आप सब की आभारी हुँ । नीलम प्रदीप संघवी IVPage Navigation
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