Book Title: Mrutyu Chintan
Author(s): P M Choradia
Publisher: Akhil Bhartiya Jain Vidvat Parishad

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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मृत्य- चिन्तन इस शरीर से जीवात्मा का अलग हो जाना ही मृत्यु है । शरीर से आत्मा के अलग हो जाने के बाद शरीर केवल जड़ रह जाता है । जब तक शरीर एवं आत्मा का सम्बन्ध है, तब ही तक जीवन कहलाता है, लेकिन मृत्यु जीवन का अन्त नहीं है, यह तो केवल एक व्यक्तित्व के विकास का अन्त है । मृत्यु एक महा निद्रा है । हम प्रतिदिन परिश्रम के बाद विश्राम करते हैं, नींद लेते हैं। आखिर यह नींद क्या है का लघु मरण है । कुछ घन्टों के ताजगी पाकर उठ खड़े हो जाते कार्यक्रम में लग जाते हैं । मृत्यु को महा निद्रा इसलिए कहा गया कि यह नींद लम्बी होती है। आखिर सारे जोवन भर के परिश्रम के बाद उसे ग्रहण किया जाता है । ? हैं नींद भी एक प्रकार विश्राम के बाद हम और अपने दैनिक थकावट को मिटाने का एक और तरीका है। थके हारे लोग नदी, तालाब, समुद्र आदि अथवा नल के नीचे बैठकर स्नान करते हैं। गहरे पानी में डुबकियाँ लगाते हैं। स्विमिंग पुल में घन्टों स्नान का आनन्द लेते हैं और For Private and Personal Use Only

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