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४. महात्मा गांधी ने ७ नवम्बर, १९३२ को सेठ जमनालाल बजाज को जो पत्र लिखा, उसमें मौत के सम्बन्ध में निम्न विचार लिखे थे
मौत, चाहे छोटा हो या बड़ा, गोरा हो या काला, यह सब के लिए आती है। उसका डर क्या और उसका अफसोस भी क्या ? मुझे तो बहुत बार ऐसा लगता है कि जिन्दगी के मुकाबले में मौत ज्यादा अच्छी होनी चाहिए। शरीर से पहले तो मुसीबत भोगनी पड़ती है और शरीर के बाद भी अनेक दुःख हैं जबकि मौत के बाद कुछ लोगों को ब्रह्म स्थिति प्राप्त हो जाती है। इसी मौत को पाने के लिए सारी उम्र निष्काम कामों में गुजारनी चाहिए।
वास्तव में महात्मा गांधी ने मौत के सही स्वरूप को समझा और ३० जनवरी, १९४८ को नाथूराम गोडसे से गोलियों के शिकार होने पर भी विचलित नहीं हुए। उनके मुख से 'राम राम' शब्द ही निकले और अन्तिम समय में अपने हत्यारे नाथूराम गोडसे को माफ करने की अभिलाषा प्रकट की।
५. संत विनोबा भावे को जब यह अहसास हो गया कि अब उनका शरीर उनका साथ नहीं दे रहा है और उनकी मृत्यु निकट है तो उन्होंने स्व इच्छा से अन्न और जल का त्याग कर दिया। भारत की तत्कालीन
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