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अपने परिवार के मुखिया की मृत्यु का दुःख है, तो दूसरी ओर अपनी इज्जत रखने को चिंता ।
जागरूक समाज का कर्तव्य है कि वह ऐसे मृत्यु भोज के प्रसंग को बढ़ावा न दे । जो परिवार मृत्य भोज का आयोजन करते हों, उन्हें समझाया जाए। फिर भी यदि कोई परिवार ऐसा आयोजन करे तो सामूहिक रूप से उसमें शामिल न हों, ताकि भविष्य में अन्य परिवार इसे स्वतः ही आयोजित नहीं करेंगे।
सम्पन्न परिवारों को चाहिए कि वे अपनी धन राशि शुभ कार्यों में खर्च करें। यदि कोई बड़ी राशि खर्च करने को भावना हो तो मृतक व्यक्ति के नाम का परिवार में ट्रस्ट बनालें एवं उसका सहो विनियोग कर उससे अजित आय को शुभ कार्यों में खर्च करें। ऐसा करने से परिवार में दान का प्रवाह सदैव चालू रहेगा एवं मृतक आत्मा को सच्ची श्रद्धांजलि होगी, उसका नाम सदैव जीवित रहेगा। ४. सती प्रथा :
सती प्रथा की आजकल बहत चर्चा है । आज भी कहीं-कहीं अपने पति के पीछे उसकी अर्थी के साथ बैठकर पत्नियों की जलने की घटनाएँ सुनने व समाचार पत्रों में पढ़ने को मिलती हैं । यद्यपि सरकार ने इसके विरुद्ध कई
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