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जीवन की क्षणभंगुरता, आत्मा की अमरता, मृत्युचिन्तन, पण्डित मरण आदि विषयों पर लिखी गई हों, रखी जा सकती हैं जिससे समय प्रमाद में नष्ट नहीं होगा और सही जीवन जीने की दृष्टि मिलेगी। २. पल्ला प्रथा :
आज भी कई परिवारों में विशेषतः गांवों में यह प्रथा प्रचलित है। घर में किसी की मृत्यु होने पर दुःख होना स्वाभाविक है लेकिन जोर-जोर से चिल्ला-चिल्ला कर रोना ताकि आस-पड़ोस के लोगों को मालूम पड़े तथा मिलने आने वाले सम्बन्धियों को यह अहसास हो जाय कि ये बहत दुःखी हुए हैं। कभी-कभी तो ऐसा देखने में भी आता है कि आँखा में एक भी आँसू की बन्द नहीं होती, फिर भी चिल्लाए जा रहे हैं। यह केवल एक कुप्रथा का पोषण है। पल्ला प्रथा का यह माहौल कई दिनों तक चलता है। इस प्रथा को बढ़ावा देने वाले और कोई नहीं, बल्कि उनके निकट के सम्बन्धी ही होते हैं। मरने के बाद, जब एक सम्बन्धी किसी अन्य गांव या शहर से मिलने आता है तो गली के चौराहे या नुक्कड़ से ही जोरों से चिल्ला-चिल्लाकर दुःख प्रकट करता हुआ आता है, ताकि उसकी सूचना उस परिवार के अन्य सदस्यों को मिल जावे। बस, फिर घर की सारी औरतें चिल्ला-चिल्लाकर रोने लगती हैं। क्या
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