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मृत्यु का भय है भयंकर, क्यों न उसे तुम तजते हो ?
मरना ही निश्चित है तो फिर,
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डर-डर कर क्यों मरते हो ?
( २ )
मृत्यु से जो भय खाते हैं,
रोज मरा वे करते हैं । जो निडर होकर जीते हैं,
वे मरकर भी जीवित रहते ||
( ३ )
मृत्यु सहज है, स्वाभाविक है,
वह है जीवन का परिवर्तन । परिवर्तन से भय वह खाता,
जो स्वभेद को नहीं जानता ॥
( ४ )
मृत्यु अमरता का प्रवेश द्वार है,
परमानन्द की सीढ़ी है ।
शोक करो नहीं, मृत्यु आने पर,
३५
और न करो मृत्यु की अभिलाषा ।
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