Book Title: Mrutyu Chintan
Author(s): P M Choradia
Publisher: Akhil Bhartiya Jain Vidvat Parishad

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Page 42
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ) मृत्यु का भय है भयंकर, क्यों न उसे तुम तजते हो ? मरना ही निश्चित है तो फिर, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir डर-डर कर क्यों मरते हो ? ( २ ) मृत्यु से जो भय खाते हैं, रोज मरा वे करते हैं । जो निडर होकर जीते हैं, वे मरकर भी जीवित रहते || ( ३ ) मृत्यु सहज है, स्वाभाविक है, वह है जीवन का परिवर्तन । परिवर्तन से भय वह खाता, जो स्वभेद को नहीं जानता ॥ ( ४ ) मृत्यु अमरता का प्रवेश द्वार है, परमानन्द की सीढ़ी है । शोक करो नहीं, मृत्यु आने पर, ३५ और न करो मृत्यु की अभिलाषा । । For Private and Personal Use Only

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