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कानून बनाए हैं, जिससे कोई भी पत्नो सता न हो। समाज में भी सती प्रथा के विरुद्ध काफी चेतना आई है। जब कभी किसी पत्नी का जीवन साथी मौत का शिकार हो जाता है तो पत्नी पर दुःख का पहाड़ आ गिरता है। उसकी विवेक शक्ति नष्ट हो जाती है, उसे अपना जीवन निकृष्ट लगने लगता है और कभी-कभी तो आवेश में आकर वह स्वयं भी अपनी जीवन-लीला समाप्त करने के लिए तैयार हो जाती है। ऐसे समय में उसके निकट के सम्बन्धी या पास रहने वाले व्यक्तियों की विशेष जिम्मेवारी है। वे उस बहन को समझाएँ एवं सांत्वना दें। उसे अकेला नहीं छोड़ें। आवेश में आकर अपनी सूझ-बूझ खोना तथा मौत को धारण करना बाल मरण है, जो भावी जीवन को बिगाड़ता है।
आज हम इक्कीसवी शताब्दी की ओर बढ़ रहे हैं, वैज्ञानिक युग में जा रहे हैं, लेकिन फिर भी उन प्रथाओं का पोषण कर रहे हैं जिनका आज के युग में कोई औचित्य नहीं है। समय के अनुसार हम बदलें अन्यथा समय हमें बदल देगा। बुद्धिमान वही है जो समय के प्रवाह को जानता है और उसके अनुरूप बदलता है।
__ मृत्यु विषय पर विविध प्रकार से चिन्तन करने के पश्चात् हम अपना मानस इस प्रकार का बनायें कि मृत्यु का सामना हँसते-हँसते करें। हर समय उसके
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