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गया। उसने मृत्यु दण्ड को समाप्त कराने का बिल्कुल भी प्रयत्न नहीं किया। वह तीस दिन तक कारागार में रहा। उसने विष का प्याला पीते हुए आत्म-गौरव, आत्म-सम्मान एवं आत्म-विश्वास का. परिचय दिया। उसने जीवन-मरण के रहस्य को सही भांति समझ लिया था, इसलिए ऐसी घड़ी में भी उसके मुख-मण्डल पर निराशा और वेदना की कोई रेखा नहीं थी। उसने हँसतेहँसते अपने प्राण दे दिए।
३. आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती की मृत्यु भी एक ऐतिहासिक घटना है। एक बार स्वामीजी जोधपुर नरेश से मिलने गए। उस समय राज दरबार में वेश्या का नाच हो रहा था। स्वामीजी ने राजा से कहा कि कुतिया और शेर का मिलाप कैसा हो रहा है ? यह सुनकर वेश्या के दिल में स्वामीजी के प्रति द्वेष उत्पन्न हो गया। उसने राजा के रसोइए को भारी लालच देकर स्वामीजी के भोजन में विष मिला दिया। भोजन करने के बाद स्वामीजी को विष का अहसास हुआ तो उन्होंने रसोइए को बुलाकर कहा-'देखो ! यदि राजा को इस बात का पता चल गया कि तुमने मेरे खाने में विष मिलाया तो तुम्हें जीवित नहीं छोड़ेंगे। इसलिये जितना जल्दी हो सके, उतना जल्दी यहां से भाग जाओ। मरते समय भी आपके ओठों पर यह दुआ थी—'भगवन ! आपकी इच्छा पूर्ण हो।'
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